International Women’s Day special : Part – 4
विश्व-पटल पर नारी और कश्मीर-दर्शन
– डॉ. अग्निशेखर


“शायद जन्मांतरों की
एक अव्यतीत स्मृति की तरह
तुम मेरे भीतर किसी अबूझ उपत्यका में बहती नदी से निकली बाहर जैसे कोई फिल्मी दृश्य हो या महाभारत सीरियल का कोई अंश
‘मैं वितस्ता हूँ ‘ कहा तुमने मुझसे
लगा मुझे समयों के पार से
बह रहा मैं अविगलित बर्फ के तूदे सा तुम में
स्पंदित हुआ मैं
और
‘मैं शिव हूँ ‘ कहा किसी ने मेरे भीतर से जैसे क्षणांश में
पहचानते हुए तुम्हें
मैं समझ नहीं पा रहा था
कि ऐसे निर्वयक्तिक क्षण में क्या मैं जाग रहा था सच में
या नींद में कहीं घूमने निकला था पैदल किसी पुराख्यान की ओर
या कि सपने में देख रहा था एक स्वप्न
या कि …
पता नहीं वो क्या था
और मैं देख रहा था अपना कविता संग्रह तुम्हारे सुकोमल हाथों में
जो एक दिन विसर्जित किया था मैंने तुममें एक जलावतन कवि की भेंट सा
यह कितने बड़े और सच्चे किसी नोबेल पुरस्कार मिलने जैसी बात थीं
कि मेरी कविताओं की पुस्तक तुमने सम्भाल कर रखी थी
तुम मेरे साथ चली आईं
मेरे तंबूघर में जो एक शरणार्थी कैंप में था जम्मू में
मैं तुम्हें लौटाना चाह रहा था वहीं
जहाँ तुम थीं बह रही युगों से
क्योंकि जगह नहीं थी मेरे तंबू में
जहाँ रख लेता मैं तुम्हें
एक अतिथि सा
करता समुचित सत्कार
उतारता आरती द्वार पर घर के
तीनों नहीं थे हमारे पास
न घर
न आतिथ्य का सामान
न घर का द्वार ही
एक उजाड़ था शरणार्थी जीवन का सब तरफ
और तुम थीं कि चली ही आ रही थीं पीछे पीछे
तभी किसी मोड़ पर मैंने तुम्हारे पांवों में छाले पड़े देखे
हैरत हुई मुझे
और तुम बोलीं,
‘भूल गए ओ लम्पट
ओ कपटेश्वर
ओ झूठे
याद नहीं, मैंने कहाँ कहाँ नहीं
ढूंढा तुम्हें हरमुख की यात्रा में
अकेली, बावरी मैं
पूछती जिस तिस से
पेड़ पक्षियों से तुम्हारे बारे में
चढ़ी भूतेश्वर पर्वत की खड़ी चढ़ाई
और..और..पकड़ा था रंगे हाथ
तुम्हें गुलछर्रे उड़ाते शिरोधार्य प्रियतमा के साथ
मैं समझ गया था अभिशाप जन्मांतरों का
जिसमें लेकिन गुम्फित था
आज तुम्हारा आना मेरे साथ भी
जलावतनी में
या कि हरमुख यात्रा पर लिए जा रहा हूँ मैं
जहाँ सिर्फ तुम्हारी ही जगह है
बाट जोहती।”

चित्र साभार: वीरजी सुम्बली
वर्ष 2022 के ‘अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस’ (International women’s Day) की थीम ही है – लैंगिक समानता अर्थात समाज में महिला पुरूष के समान अधिकार और जब हम समान अधिकारों की बात करते हैं, तो यह चर्चा तब तक अपूर्ण है, जब तक हम कश्मीर- दर्शन की बात न करें क्योंकि कश्मीर की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि में जो शैव और शाक्त दर्शन है, उसमें स्त्री सम्मान, उसकी स्वाधीनता की जो बात है, वह और कहीं भी देखने को नहीं मिलती और इस विषय पर संवाद करने के लिए आज ‘चुभन पॉडकास्ट’ पर समकालीन हिंदी कविता के सशक्त हस्ताक्षर डॉ.अग्निशेखर जी होंगे, जो हिंदी साहित्य का एक प्रतिष्ठित नाम हैं।
आपके सात कविता-संग्रह – ‘किसी भी समय'(1992), ‘मुझसे छीन ली गयी मेरी नदी'(1996),
‘कालवृक्ष की छाया में'(2002),
‘जवाहर टनल’ (2002),
‘मेरी प्रिय कविताएँ’ (2014)
,’जलता हुआ पुल'(2019), ‘नील गाथा’
(2021),
‘हम जलावतन’ (2022),
इनके अतिरिक्त संपादित कहानी संकलन ‘ दोज़ख’ व ‘मिथक नन्दिकेश्वर’ सहित अनेक पुस्तक-पुस्तिकाएं संपादित।
‘पहल’ तथा ‘प्रगतिशील वसुधा ‘ के कश्मीर अंकों का अतिथि सम्पादन। गुजराती,नेपाली,
बाँग्ला,कन्नड़,तेलगु,ओडियाअसमी,पंजाबी,अंग्रेज़ी,मराठी भाषाओं में कविताएं अनूदित।कश्मीरी साहित्य से प्रतिनिधि कविताओं के हिन्दी में अग्निशेखरजी ने विपुल अनुवाद किए हैं।
पुरस्कार और सम्मान :
‘हिन्दीतर भाषी हिंदी लेखक पुरस्कार'(केंद्रीय हिन्दी निदेशालय),
‘गिरिजा कुमार माथुर स्मृति पुरस्कार’,
‘सूत्र सम्मान’,
‘सर्वश्रेष्ठ पुस्तक सम्मान’, ‘मीरा स्मृति सम्मान’, ‘आचार्य अभिनवगुप्त सम्मान’,
‘साहित्य शताब्दी सम्मान’ तथा ‘सौहार्द सम्मान’ व ‘नरेश मेहता वाङमय सम्मान’ से सम्मानित।

अग्निशेखर जी वर्ष 1990 से जम्मू में निर्वासित कवि व एक्टिविस्ट के रूप में देश-विदेश में सक्रिय हैं।
इसलिए आज के संदर्भ में आपको सुनना, आपके विचार जानना, हमारे लिए किसी उपलब्धि से कम नहीं होगा।

चित्र साभार:वीरजी सुम्बली
Am proud Kashmiri Hindu Artist against genocide
Respect women 👏
अति सुंदर विचार एवम हमारी उच्च संस्कृति का सुंदर प्रस्तुतिकरण।