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आधुनिक संस्कृत की पहचान : पद्मश्री वेदकुमारी घई जी

“चुभन पॉडकास्ट”
पद्मश्री वेदकुमारी घई जी

आज से ‘संस्कृत सप्ताह’ का आरंभ हो रहा है।प्रत्येक वर्ष हम श्रावण पूर्णिमा के तीन दिन पूर्व और तीन दिन बाद संस्कृत सप्ताह मनाते हैं।अतः इस वर्ष ‘संस्कृत सप्ताह’ 19 अगस्त से 25 अगस्त तक है।
इस अवसर पर ‘चुभन’ एक ऐसे व्यक्तित्व से आपका परिचय करवा रहा है, जिनके विषय मे कुछ भी लिखने-बोलने के लिए शब्द भी कम पड़ जाते हैं।आप न सिर्फ संस्कृत साहित्य अपितु डोगरी और हिंदी साहित्य की विदुषी लेखिका और प्रसिद्ध शिक्षाविद डॉ. वेद कुमारी घई जी हैं, जो जम्मू विश्वविद्यालय में संस्कृत की विभागाध्यक्ष रहीं।

कोई यूं ही, वट वृक्ष नही बन जाता, यूं ही नहीं कोई, ध्रुव तारा बन जाता। आदरणीय वेद कुमारी घई जी की छांव में, संस्कृत सुकून पाती है। उनकी दिशा से, संस्कृत साहित्य मार्गदर्शन पाता है। आप वह लहर हैं जो अनायास ही लेखकों की प्रेरणा बन गई हैं। पद्मश्री (2014) से सम्मानित यह नाम ‘आदरणीय’ से कहीं ऊंचा है। 1997 में आपको ‘राष्ट्रपति सम्मान’ से सम्मानित किया गया। 2005 में ‘डोगरा रतन’ अवार्ड आपको दिया गया। 2010 में ‘स्त्री शक्ति’ पुरस्कार से आप को नवाजा गया। सितारों की ऊंचाई कितनी भी हो, आसमान से कम ही होती है। ये सम्मान, आपको सुशोभित करते सितारे हैं तो आप इनका आसमान हैं। सम्मान जो भी हो, वह खुद आपके नाम से सम्मानित होता है, साहित्य महकता है एवं संस्कृत अपने यौवन पर इतराती है।

आपसे मैंने जब यह पूछा कि स्वतंत्रता प्राप्ति से पहले जबकि लड़कियों की शिक्षा पर बहुत ज़्यादा ध्यान नहीं दिया जाता था, तो आपने कैसे और कहां शिक्षा प्राप्त की ? इस पर उन्होंने बताया कि उस ज़माने में उनकी मां चारों वेदों की ज्ञाता थीं और पढ़ने लिखने की प्रेरणा उन्हें अपनी मां से ही मिली।

आपने स्वतंत्रता संग्राम में भी अपना योगदान दिया और उन दिनों को याद करते हुए बताया कि कैसे वे मंच से कविता पाठ करती थीं और अंग्रेजों के देश छोड़ देने की बात करती थीं।

आपने लगभग 40 वर्ष तक शिक्षा के क्षेत्र में अपना अहम योगदान दिया।आपने संस्कृत में लिखे ‘नीलमत पुराण’ का अंग्रेजी में अनुवाद किया, जिसपर जापान के विद्वानों ने भी शोध-कार्य किया।इस प्रकार आपने ‘नीलमत पुराण’ का अनुवाद कर उसे विदेशों तक पहुंचाया।

 

आपने संस्कृत के अलावा हिंदी और डोगरी साहित्य में भी अपना अहम योगदान दिया।डोगरी भाषा की ध्वनियों पर आपने विशेष कार्य किया।उनके इस योगदान को देखते हुए वर्ष 2010 में केंद्र सरकार के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने आपको ‘स्त्री शक्ति’ पुरस्कार से सम्मानित किया।

एक और कार्य, जिसका उल्लेख अगर मैं नहीं करूंगी तो उनके विषय मे बात करना अधूरा रह जाएगा और वह है, उनका समाज-सेविका का रूप।उन्होंने स्वयं ‘चुभन’ के पटल पर यह कहा कि उनको सबसे प्रिय यही कार्य है।आपने ‘वसुधैव कुटुम्बकम वेलफेयर सोसायटी’ के माध्यम से दस हज़ार से अधिक बच्चों को शिक्षा दी, जो कि अब तक निरंतर जारी है।उनके प्रयासों से शिक्षित बच्चे, अपने पैरों पर खड़े है।

आपने संस्कृत को, कुछ इस तरह तराश दिया है, मानो संस्कृत अब अपने चिर यौवन को प्राप्त कर चुकी है। आपने आधुनिक साहित्य को, उसके मूल से परिचित करवाया। आपने संस्कृत की जड़ों को जीवन की ऊष्मा प्रदान की है। हम आपको, आज के संस्कृत के फूलों की खुशबू में स्वयं से लिपटा पाते हैं। आपके आशीर्वाद में एक नया संचार पाते हैं।

 

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