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रंगमंच और सिनेमा की सशक्त अभिनेत्री : भाषा सुम्बली

भाषा सुम्बली
चुभन पॉडकास्ट

समकालीन हिंदी कविता के सुप्रसिद्ध कवि डॉ. अग्निशेखर जी की एक कविता से मैं आरम्भ करूँगी।पहले आप इस कविता को पढ़ें, फिर मैं बताती हूं कि आज की पोस्ट का आरंभ इस कविता से ही क्यों ?

एक ललवाख का जन्म
(बेटी भाषा सुम्बली के लिए)

-अग्निशेखर

प्रसूति गृह के बाहर मैं
घड़ी की सुई की तरह कल्पनाओं में
चक्कर काट रहा था अपने ही इर्द-गिर्द जैसे सामने से
गुज़र रहा था स्मृतियों का
दरियाई जुलूस
फूलमालाओं, तोरणों से सजा
और सौहार्द के पुलों के नीचे से होता हुआ

नावों में विहार करती निकल रही थीं
कविताएँ मेरी ,
बिम्ब उनके,उपमाएँ,कल्पनाएँ,
शिल्प इत्यादि सब
दौड़े जा रहे थे जैसे तुम्हारी
अगवानी करने
पाने सार्थकता अपनी

श्रीनगर के ललद्यद अस्पताल में
टिक् टिक् की आवाज़ कर रही थी
घड़ी की धड़कनें मेरी
मैं बुदबुदा रहा था
ललद्यद का वाख
कि कच्चे धागे से समुद्र में
खे रही हूँ नौका…

यों भी व्यक्तिगत कविताओं के
निहितार्थ ही होते हैं नवजात
और प्रसन्न होतीं हैं सात सौ वर्षों से
उनकी प्रथम किलकारियों से
ललद्यद
जो यहीं इसी अस्पताल में करतीं हैं वास
सांसारिक दृष्टि से जिसने
नहीं जनी थी कोई सन्तान

सुविख्यात स्त्री चिकित्सक
डाॅ.शक्ति भान करती हैं
ऑपरेशन थियेटर में प्रवेश
हो न हो
चौदहवीं शताब्दी की आदि कवयित्री ललद्यद ही हैं ये डाॅक्टरानियां

मैं अब बुदबुदा रहा हूँ वो वाख ललद्यद का
जिसमें बाहर से अपने भीतर लौटने से
होता है कायाकल्प ललद्यद का
और वह खुशी से पागल
नाचती है निरावरण
मेरी तरह यहाँ
इस प्रसूति गृह के बरामदे पर
जब मैंने सुनी तुम्हारी पहली किलकारी
ललद्यद के नये वाख की दिव्य आहट…

ये कविता अग्निशेखर जी ने अपनी बेटी भाषा सुम्बली के लिए लिखी थी, जब उनका जन्म हुआ था।चौदहवीं शताब्दी में कश्मीर की यशस्वी संत कवयित्री ललद्यद ने जो काव्य कहा/सृजन किया, उसके छंद को वाख (संस्कृत वाक्य ) कहते हैं और एक कवि हृदय पिता ही अपनी बेटी की पहली किलकारी को ललद्यद के नए वाख की दिव्य आहट कह सकता है और उस बेटी भाषा ने भी पिता के शब्दों को सार्थक किया, जो थिएटर आर्टिस्ट तो हैं ही, उसके साथ ही आपने टेलीविजन और फिल्मों में भी अभिनय किया है।आपने प्ले भी लिखे और फिर उनका मंचन भी किया।’

 

छपाक’ जैसी फ़िल्म से आपने बॉलीवुड इंडस्ट्री में कदम रखा

और अब विवेक अग्निहोत्री जैसे निर्देशक की फ़िल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ में आपने मुख्य भूमिका अभिनीत की है।ऐसी बहुमुखी प्रतिभा की धनी कलाकार से आज ‘चुभन पॉडकास्ट ‘ पर मैंने बात की।भाषा ने अपने आरंभिक जीवन से लेकर अभी तक के पूरे सफर को बहुत ही सुंदर और संतुलित तरीके से जिया है।आपने नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से प्रशिक्षण लिया, वहां के अपने अनुभव भी उन्होंने साझा किए।आपको थिएटर का शौक घर के साहित्यिक माहौल के चलते ही हुआ।आपने मुम्बई जाकर एक साल तक अनुपम खेर जी के एक्टिंग स्कूल में पढ़ाने का कार्य किया।
जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटने के बाद क्या अंतर आया है, इसका भी आपने बहुत ही बेबाकी से जवाब दिया।भाषा जी की बातों को सुनकर आप समझ ही जाएंगे कि उन्होंने सफलता कोई एक दिन में हासिल नहीं कर ली, बल्कि आपकी सफलता में आपकी मेहनत, लगन और समर्पण साफ झलकता है।आपको इनलैक्स इंडिया फाउंडेशन से फेलोशिप मिली, जिसके तहत आपने नाट्यशास्त्र की मूलभूत टेक्निक्स और प्राचीनतम भारतीय शास्त्रीय नाट्य शैली कुड़ियाट्टम, अपने गुरु गोपाल वेणु जी से केरल में सीखी।
हम तो बस यही कहना चाहेंगे कि यह तो शुरुआत है, आपको आगे बढ़ते जाना है।कई लक्ष्य आपको अभी हासिल करने हैं।

 

6 thoughts on “रंगमंच और सिनेमा की सशक्त अभिनेत्री : भाषा सुम्बली

  1. अद्भुत कविता है। धन्यवाद भावना जी इतनी अच्छी कलाकारा की बात साझा करने के लिए । 🙏

    1. धन्यवाद श्रद्धा,आप स्वयं एक इतनी प्रतिभाशाली रंगमंच अभिनेत्री हो।आपके सुझाव और प्रतिक्रिया हमारे लिए महत्वपूर्ण हैं।

  2. हम ऐसी यथार्थपरक फ़िल्म ज़रूर देखेंगे।ऐसी फिल्म की कलाकार से हमारा परिचय करवाने के लिए भावना जी को बहुत बहुत आभार

  3. कला की व्यवहारिकता, एवं व्यवसायिक्ता का बहुत ही सुगम विष्लेषण। इस साक्षात्कार से साबित होता है कि सफलता की प्रक्रिया होती है। न कि बस किस्मत। एक ऐसा साक्षात्कार, जिससे हम कला ही नहीं किसी भी क्षेत्र में सफलता का मार्ग निर्देशन पा सकते हैं।

  4. ऐसी फिल्में सच को उद्घाटित करती हैं और समाज की आंखें खोलने का कार्य करती हैं।आपलोगों को साधुवाद।

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