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तमिल साहित्य:उद्गम और विकास

“चुभन पॉडकास्ट”
चुभन पॉडकास्ट
                         – अजय “आवारा”

यह एक कौतुहल भरा सवाल हो सकता है, कि विश्व की प्राचीनतम भाषा की सूची में कौन-कौन सी भाषाएं आती हैं। क्या हम यह मानकर गलती नहीं कर रहे, कि संस्कृत सभी भारतीय भाषाओं की जनक है। जब हम प्राचीनतम भाषाओं की बात करते हैं तो ग्रीक एवं अन्य भाषाओं की सूची एका एक मस्तिष्क में आती है। उन्हीं के समकालीन, तमिल भाषा का उद्गम भी है। आज, विश्व की सभी प्रचलित एवं बोली जाने वाली भाषाओं में, तमिल प्राचीनतम भाषा है।
शायद यह अचरज का ही विषय हो, कि तमिल की उत्पत्ति में संस्कृत का कोई योगदान नहीं है। संभवतः तमिल संस्कृत से भी प्राचीन भाषा हो सकती है। एक किंवदंती के अनुसार, तमिल का अवतरण भगवान शिव द्वारा महर्षि अगस्त्य के माध्यम से किया गया है। यह तो स्थापित सत्य है, कि तमिल भाषा के प्रचार-प्रसार में महर्षि अगस्त्य का प्रमुख हाथ रहा है । महर्षि अगस्त्य ही तमिल के पिता कहे जाते हैं। तमिल के प्रचार-प्रसार में महर्षि अगस्त्य का योगदान अभूतपूर्व एवं अविस्मरणीय है।
तमिल आलेखों का इतिहास ईसा पूर्व तीसरी सदी में देखा गया है। परंतु तमिल साहित्य का उद्गम 2000 वर्ष पहले माना गया है। आधुनिक भारत में हिंदी के बाद सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा, तेलुगु है, और तेलुगु के बाद तमिल का ही क्रम आता है। अगर विभिन्न देशों में, तमिल के फैलाव का अध्ययन किया जाए, तो संभवतः तमिल भाषा की पृष्ठभूमि हिंदी से भी ज्यादा वृहद हो सकती है । भारत के अलावा, श्रीलंका में लगभग आधी आबादी तमिल भाषा का प्रयोग करती है। सिंगापुर में तो द्वितीय राजकीय भाषा ही तमिल है। यह हमारे लिए गर्व का ही विषय है कि एक भारतीय भाषा को किसी और देश की द्वितीय राजकीय भाषा के क्रम में स्थापित होने का सम्मान प्राप्त है।
तमिल साहित्य की बात करें तो, तमिल का संगम काल ही इसका स्वर्णिम काल रहा है । यही काल तमिल साहित्य का प्रथम काल भी रहा है। इस काल में न सिर्फ तमिल साहित्य की मजबूत नींव रखी गई, अपितु एक भव्य इमारत के रूप में भी तमिल साहित्य स्थापित हुआ। इसके अलावा चोला एवं पांडियन शासकों का काल भी तमिल साहित्य के प्रचार-प्रसार में मील का पत्थर साबित हुआ। कम्ब रामायण एवं परियपुराण की भी रचना इस काल में ही की गई। इस काल में ही तमिल साहित्य का सर्वोत्तम श्रृंगार हुआ। एक समय ऐसा भी रहा, जब तमिल साहित्य में भक्ति काल की प्रधानता बनी रही। यदि, भक्ति काव्य को, तमिल साहित्य का एक युग कहा जाए, तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।
18विं शताब्दी में ईसाई मिशनरियों के आगमन के बाद, तमिल साहित्य पर बहुत काम हुआ। इस काल में तमिल गद्य का विकास चरमोत्कर्ष पर रहा। यही वह काल था जब तमिल साहित्य की जटिलता को सरल भाषा में परिभाषित किया गया। व्याकरण का सरलीकरण हुआ, एवं तमिल साहित्य के व्यवस्थित शब्द कोश की रचना भी इस काल में ही की गई। एक तरह से इस काल ने ही तमिल साहित्य की धारा के आम जनमानस से जुड़ने की पृष्ठभूमि तैयार की। तमिल साहित्य में विभिन्न धर्मों के प्रवेश की पृष्ठभूमि भी इस काल में ही तैयार हुई। हिंदू धर्म ही नहीं, अन्य विभिन्न धर्मों के साहित्य का अवतरण, भारत में सर्व प्रथम तमिल साहित्य में ही हुआ।
19वीं सदी के अंत में, तमिल साहित्य, आम जनमानस के दिलो-दिमाग में अपनी पैठ जमाने लगा था। महाकवि सुब्रमण्यम भारती ने तमिल साहित्य को आम जनमानस से जोड़ने में मुख्य भूमिका निभाई। उनका लेखन तो जैसे आम जनमानस के लिए ही लिखा गया था। परिणाम स्वरूप, इस काल में तमिल साहित्य का फैलाव एक महासागर के समान रहा। संभवतःइन्हीं कारणों के कारण, तमिल साहित्य, भारतीय भाषाओं में से प्रकाशित होने वाला पहला साहित्य बना। इस काल में ही तमिल गद्य विभिन्न विधाओं में बहुतायत से लिखा गया। शेक्सपियर की शैली में नाट्य रचना का प्रयोग भी तमिल साहित्य में ही किया गया है।
ऐसा भी माना जाता है कि दक्षिण भारत की अन्य भाषाओं के साहित्य तमिल साहित्य से प्रेरित है।इसके अलावा, तमिल साहित्य ने विश्व भर से भी, शोधकर्ताओं को अपनी और आकर्षित किया है। जहां, संस्कृत भारतवर्ष का मुकुट रहा है, हिंदी हमारा श्रृंगार है, तो तमिल को हम हमारी बिंदी कह सकते हैं। बिंदी के बिना भारतीय नारी का श्रृंगार पूर्ण नहीं माना जाता। उसी तरह तमिल साहित्य का अध्ययन किए बिना, शायद हम भारतीय साहित्य के गौरवशाली इतिहास के शीर्ष तक नहीं पहुंच सकते।

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