चाचाजी हैं न…..

हास्य और व्यंग्य की कला, एक ऐसा माध्यम है जो हमें जीवन की जटिलताओं को समझने और उन्हें हल्के में लेने का अवसर देता है। जब रचनाकार इस कला का उपयोग सामाजिक मुद्दों पर ध्यान आकर्षित करने और लोगों को जागरूक करने के लिए करते हैं, तो ये और भी प्रभावशाली हो जाती है।

हास्य और व्यंग्य की चुभन –

ऐसे रचनाकार जो हास्य और व्यंग्य का स्तर बनाकर चलते हैं, वे न केवल लोगों को हंसाते हैं, बल्कि उन्हें सोचने पर मजबूर भी करते हैं।

लेकिन आज के समय में हास्य और व्यंग्य की परिभाषा बदल गई है। पहले हास्य और व्यंग्य का उद्देश्य लोगों को हंसाना और सामाजिक मुद्दों पर ध्यान आकर्षित करना था, लेकिन आजकल ये अक्सर दूसरों का मज़ाक बनाने और उन्हें नीचा दिखाने के लिए उपयोग किया जाता है।

गिरीश पंकज जी की रचना –

 

हमारा सौभाग्य है कि “चुभन” पटल से देश के सम्मानित और वरिष्ठ साहित्यकार गिरीश पंकज जी जुड़े हैं। आपको व्यंग्य लेखन के लिए अनेकों प्रतिष्ठित सम्मानों से सम्मानित किया जा चुका है।

आपकी रचनाएं अक्सर लोगों के दिलों में बस जाती हैं और उन्हें लंबे समय तक याद रहती हैं।

आज गिरीश जी की एक ऐसी ही रचना को पढ़ें और चुभन पॉडकास्ट पर इसका मजेदार पाठ सुनें।

चुभन जो दिल पर लगे, उसके बारे में यदि चाहें तो अपने विचार साझा करें।

            चाचाजी हैं न …

 

 

पिछले दिनों की बात है। हमे एक टॉपर बच्चा मिल गया।

अखबार में उसकी फोटू छपी थी इसलिए हम पहचान गए और बधाई दी. -”अल्ले वा-वा! तुम ही हो वो टॉपर, जो अखबारों में गदर मचाए हुए है ? बधाई।”

लड़के ने ‘थैंकू’ टाइप का कुछ कहा। हमने पूछा ” भाई, हमे भी कुछ टिप्स दो, ताकि दूसरे बच्चों को कुछ बता सकें कि तुमने टॉप कैसे किया? ”

लड़के ने छूटते ही कहा, ”चाचाजी हैं न?”

मैं अचकचा गया, फिर पूछा, ”तुम्हारे टॉपर होने का चचा जी से का सम्बन्ध है?”

लड़का मुस्कराया और बोला, ”ये तो अंदर की बात है। काहे को बताएँ?”

हमने पूछा, ”कोई बात नहीं। हर किसी का ट्रेंड सीक्रेट होता है। अच्छा, किस-किस सब्जेक्टवा में टॉप  किये हो, भाई?”

वह सोचते हुए बोला, ”हिट्री और पोड़रीकल सेन्स में.”  मैं चकराया, ”हिस्ट्री और पोलिटिकल साइंस तो सुना था, तुम जउन सब्जेक्ट  बता रहे  हो, वो का कोई नया सब्जेक्ट लॉन्च हुआ है?”

लड़का बोला, ”पता नहीं, चाचा जी हैं न, उनको पता होगा।”

मैं  सिर खुजाने लगा।  ”अच्छा ये बताओ, परीक्षा  तो तुमने दी है, लेकिन पता तुम्हारे चचा को होगा, ई कौन-सा फंडा है भाई ?”

भतीजे का जीवन – दर्शन –

 

लड़का सत्यभाषी और दबंग टाइप का था, वह बिंदास बोला, ”देखिए, हम जमींदार लोग हैं।  क्या हमको परीक्षा देना शोभता है? हमका बुड़बक समझा  है का? दू  कौड़ी के लइका लोग परीक्षा देते हैं। हम तो सीधे टॉपर बनते है, का बनते  हैं? टॉपर। बूझे के नहीं? यह हमारी खानदानी परम्परा है। हमाये पिता भी टॉपर थे, और उनके पिता भी यानी हमारे दादा। ”

मैंने पूछा – ”अच्छा, तो वे बड़े पढ़ाकू रहे होंगे?”

लड़के ने  तपाक से कहा, ”नहीं, उनके भी चाचा जी थे। ”

फिर उसने  हमसे ही पूछ लिया, ”क्या आप भी टॉपर हैं?”

हमने कहा, ”नहीं  रे, हम तो फ़्लॉपर रहे, काहे कि हमारे चाचा जी नहीं थे न। दूर के एक ठो चचा जान तो थे, लेकिन उनको ईमानदारी का कीड़ा काट लिया था. हमसे कहते थे, मेहनत करके पास होना चाहिए.”

लड़का भड़कते हुए बोला, ”छी-छी, बड़े ही गंदे चाचा थे। ”

वर्षों बाद एक युवक मिला। उसने पूछा, ”अंकल, पहचाना मुझे?”

मैंने उसे गौर से देखा और मुस्कराते हुए कहा, ”अरे हाँ, तुम शायद वही टॉपर हो, चाचाजी वाले ? क्या कर रहे हो आजकल?”

वह बोला, ”सरकारी नौकरी लग गई है।  ऐश है अब तो ? काम न धाम, हर महीने दाम। जयश्री राम.”

मैंने कहा, ”शाबाश,  तुम सरकारी  नौकरी पा गए, मगर कैसे?”

युवक ने फौरन जवाब दिया, ”चाचा जी हैं न। ”

मैंने कहा, ”तुम्हारे चचा तो कमाल के हैं?”

युवक हंसते हुए बोला, ”उनके चचा भी कमाल के थे। ”

इतना बोल कर युवक आगे बढ़ गया। मैं सोचता रहा, काश, इस देश में ऐसे दयालु और सहयोगी चाचाओं की भरमार हो जाए, तो देश को बेरोजगारी की समस्या से मुक्ति मिल सकती है।

खैर, सबका नसीब इतना बुलंद नहीं होता।

वर्षों बाद भतीजे से मुलाकात –

 

बहुत दिनों के बाद चाचा का भतीजा एक बार फिर टकरा गया। इस बार उसका हुलिया एकदम रईसी वाला था। गले मे सोने की चेन, हाथ मे भी सोने का कड़ा। अपनी कीमती कार से वह उतर रहा था और कुछ अकड़ कर इधर- उधर देख भी रहा था। शायद वह देख रहा था कि उसकी रईसी को लोग देखदाख भी रहे हैं या नही। चारो तरफ देख कर वह सन्तुष्ट हुआ कि लोग उस पर दृष्टिपात कर रहे हैं।

तभी मैने आवाज़ लगाई, “और भतीजे, कैसे हो?”

मुझे देख कर वह मुस्कुराया, “मज़े में हूँ। अब तो ऊपरी कमाई भी हो रही है। मालामाल हो गया हूं। ”

“यानी करप्शन बोले तो भ्रष्टाचार?” मैंने अतिरिक्त मुस्कान फेंकते हुए कहा ताकि बन्दा नाराज़ न हो जाए। वह नाराज नही हुआ और बोला, “अंकल, भ्रष्टाचार शब्द घिस चुका है। अब उसका नया नाम है, शिष्टाचार।  खिंचाई विभाग में हूँ। डट कर खींच रहा हूँ।”

“खिंचाई विभाग? यह कोई नया विभाग है?”

वह बोला, ”नही अंकल, सिंचाई विभाग को हम लोग खिंचाई विभाग कहते हैं। ऊपर से नीचे तक सब खींचते रहते हैं। बड़े-बड़े प्रोजेक्ट आते  हैं न। करोड़ो के।

50 करोड़ आया, तो काम होगा बीस करोड़ का। बाकी  रकम दफ्तर में बंट जाती है। मेरा अपना आतंक है, मुझे कुछ ज़्यादा मिल जाता है।”

” तुम्हारा आतंक, मगर क्यों?”

“अरे, चाचाजी हैं न । बाहुबली।”

भतीजे के दुर्दिन –

इतना बोल कर वह होनहार भतीजा आगे निकल गया। एक साल बाद वही भतीजा फिर टकरा गया। मगर इस बार उसकी हालत खस्ता नज़र आई।  मैंने पूछा, “यह तुम्हारा क्या हाल हो गया है। क्या आजकल रिश्वत नहीं ले रहे?” वह ऋषिवत  मुद्रा में आकर बोला, “बुरे दिन आ गए हैं, अंकल! सब कुछ खत्म हो गया। रिश्वतखोरी के आरोप में रंगे हाथों पकड़ा गया और साल भर से निलंबित हूं।”

मैंने कहा,” तुम्हारी बात सुन कर मैं अचंभित हूँ। तुम्हारे तो चाचा जी हैं न। इस बार तुमको बचाया नहीं?
वह बोला,” यही तो लफड़ा है। हमारे चाचा जी एक साल पहले ही चल बसे। उनके जाने के बाद इस

भतीजे की दुर्गति शुरू हो गई। दफ्तर का कमजोर कूकुर भी काटने को दौड़ता है।

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