अंधा बांटे रेवड़ी फिर फिर अपने को दे

शीर्षक पढ़कर आप सोच रहे होंगे कि मेरा इशारा किस ओर है तो दोस्तों आज पूरा दिन राजनीतिक हलकों में जो कुछ होता रहा उसे देख सुन कर मुझे यही मुहावरा याद आया।कॉंग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी अपना इस्तीफा देते फिर रहे हैं लेकिन किसको? जवाब एक ही अपने दरबारियों या चापलूसों या फिर परिवार के सदस्यों को ही।जिन्होंने इस्तीफा नामंज़ूर करना ही था।सिर्फ दिखावा! इसी तरह अभी अभी न्यूज़ आई कि ममता बनर्जी ने भी अपना इस्तीफ़ा पेश किया लेकिन पार्टी ने नामंज़ूर कर दिया।शर्म आती है इन लोगों के दिखावे पर।
बिल्कुल यह मुहावरा इन्ही लोगों के लिए सटीक बैठता है कि जैसे कोई अंधा व्यक्ति देख न पाने के कारण रेवड़ी बेचते बेचते खुद को ही देने लगता है वैसे ही यह नेता जिन्हें अब तो नेता कहते ही शर्म आती है, वे भी अंधे हो गए लगते हैं और अपना इस्तीफा खुद को ही दे कर खुद से ही वापस ले लेते हैं क्योंकि इनके बिना तो पार्टी ही नही चल सकती।परंतु खुशी इस बात की है कि इस परंपरा का अब अंत हो रहा है और सकारात्मकता से सोचें तो एक नए युग की शुरुआत होती लग रही है।

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