आज सुबह होते ही हम सबको एक समाचार जिसने स्तब्ध कर दिया और मुझे बताने की ज़रूरत नहीं कि वह हैदराबाद गैंगरेप के चारों आरोपियों की पुलिस एनकाउंटर में हुई मौत का मामला था।इस समाचार को सुनते ही मेरी,मेरे परिवार और मेरे दोस्तों की पहली प्रतिक्रिया आश्चर्य और ख़ुशी की थी लेकिन फिर तुरंत मेरे मन में एक भाव आया कि आखिर हमें ऐसी ज़रूरत ही क्यों पड़ रही है कि हम किसी की मौत पर खुश हो रहे हैं।गंभीरता से सोचा जाये तो विगत कई वर्षों से यही हो रहा है कि ऐसे इतने बर्बर हादसे हमारी बहनों के साथ हो जाते हैं और क़ानूनी पेंचों में फंस कर ही इन घटनाओं के आरोपी वर्षों तक बिना किसी सख्त सजा के जीवन यापन करते रहते हैं और कई बार तो जमानत पर रिहा होकर अपना सामान्य जीवन भी बिताने लगते हैं।निर्भया कांड किसी को भी भूला नहीं है।सात वर्ष बीत जाने के बाद भी आरोपियों को सख्त सजा क्यों नहीं मिल पायी,इसका जवाब किसी के भी पास नहीं है।इसी तरह जब 27 नवम्बर को हैदराबाद की घटना घटी तो हम सब इसी सदमे में थे कि इन आरोपियों को भी न जाने कब सजा मिलेगी?पहली बार मैंने देखा कि इस बार के हादसे के बाद पूरे देश में बहुत ज़्यादा दहशत सी फ़ैल गई।हर बेटी के माता-पिता डर के साए में आ गये क्योंकि बाहर गई बेटी के सकुशल लौट आने की उन्हें चिंता सताने लगी और इस वीभत्स घटना के दस दिन के अन्दर ही जब आज सुबह-सुबह हमें यह सुनने को मिला कि उन दरिंदों की मौत एनकाउंटर में हो गई है तो दिल को एक सुकून मिला।
परन्तु आज पूरे दिन टेलीविज़न और सोशल मीडिया के द्वारा जो भी कुछ देखने सुनने को मिला उससे मुझे तो यही समझ आया कि पूरे देश की आम जनता तो खुश और किसी हद तक संतुष्ट दिखी लेकिन इस मुद्दे पर राजनीति भी खूब हुई।मैं किसी का भी नाम नहीं लेना चाहती लेकिन उन लोगों को भी मैंने इन चारों आरोपियों की मौत के बाद यह कहते सुना कि ऐसा नहीं होना चाहिए था क्योंकि यह मानवाधिकारों का हनन है,जिन्होंने अभी दस दिन पहले इसी बेटी की इतनी बर्बर और क्रूर तरीके से मौत होने पर दो शब्द श्रद्धांजलि के भी बोलना उचित नहीं समझा था।मैं मानती हूँ कि कानून को हाथ में लेने का किसी को भी हक नहीं होता है लेकिन मानवाधिकारों की बात “मानव” के लिए होनी चाहिए न कि दरिंदों के लिए।फिर पुलिस ने आत्मरक्षा के लिए यह कदम उठाया और इसमें क्या गलत था और क्या सही?यह तो न्यायालय द्वारा देखने की बातें हैं और हमें इन पेंचों में नहीं पड़ना चाहिए।मैं तो बस एक सवाल करती हूँ कि जिस निर्मम तरीके से हैदराबाद की इस बेटी या निर्भया की मौत हुई या अभी कल ही उन्नाव की एक बेटी को जिंदा आग का गोला ही बना दिया गया क्या यह सब कोई मानव कर सकता है?इसका जवाब कोई भी ‘हाँ’ में नहीं देगा क्योंकि इसका जवाब ‘न’ के सिवा कुछ हो ही नहीं सकता।जिस पूरी घटना को हम डर,दहशत और शर्म से देख भी नहीं पाते न पूरी तरह सुन पाते हैं उस घटना को इन लोगों ने अपने हाथों अंजाम दिया है।ऐसे में इन लोगों के लिए मानवाधिकारों का हवाला क्यों?कोई भी पुरुष तो किसी नारी के साथ ऐसा नहीं कर सकता फिर ऐसा करने वाले हैवान हैं,दरिन्दे हैं।ऐसे दरिंदों के बचाव या उन पर रहम दिखाने के लिए ‘मानवाधिकार आयोग’ नहीं होने चाहिए बल्कि इन जैसे दरिंदों की पैरवी के लिए ‘दरिन्दाधिकार आयोग’ बनाये जा सकते हैं।
मुझे आज उन लोगों को भी धन्यवाद देना है जिन लोगों ने इस पूरी घटना के बाद सड़कों पर निकलकर पुलिस,प्रशासन और न्यायालयों को सोचने पर मजबूर किया।बहुत सारे संगठनों ने इन आठ-नौ दिनों में बिना किसी स्वार्थ के प्रोटेस्ट किया।ऐसा पहली बार हो रहा है कि दिल में बहुत कुछ होते हुए भी मैं जैसे कुछ भी लिखने में स्वयं को असमर्थ महसूस कर रही हूँ।बस हर देश की बेटी का आज यही कहना है कि उसे भी समाज में बराबरी का अधिकार मिले और यह कैसी बराबरी कि वह घर से निकलने में भी डरे जिस वजह से जीवन में आगे बढ़ने के रास्ते ही उसके लिए न हों।अंत में मैं हिंदी साहित्य के महान कवि जय शंकर प्रसाद की कालजयी रचना ‘कामायनी’, जिसकी एक-एक पंक्ति मुझे बहुत ही पसंद है की दो पंक्तियाँ देना चाहूंगी जिसमें प्रसाद जी ने नर-नारी तथा अधिकारी-अधिकृत के बीच समन्वय स्थापित करने की कोशिश की-
“तुम भूल गये पुरुषत्व मोह में कुछ सत्ता है नारी की,
समरसता है सम्बन्ध बनी अधिकार और अधिकारी की।”
अब यह तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग के सोचने का विषय है कि इन पंक्तियों की रचना कवि ने 1935 में की थी और आज लगभग 84 वर्ष बीत जाने के बाद भी स्थितियां ज्यों की त्यों क्यों हैं?हर क्षेत्र में इतना आगे बढ़ जाने के बाद भी औरतों को उपभोग की वस्तु ही क्यों समझा जाता है?समाज की इस गन्दी और दूषित मानसिकता को जब तक नहीं बदला जाएगा तब तक ऐसे हादसों में कितनी कमी आएगी कहना मुश्किल है।दिल तो यही चाहता है कि ऐसे किसी भी हादसे को अब हम न सुनें।
क्या नारी इन्सान नहीं है।दरिन्दों के लिए मानवाधिकार की बातें?🤔
नारी तुम केवल श्रद्धा हो
विश्वास रजत नग पद तल में।
पीयूष स्रोत सी बहा करो
जीवन के सुन्दर समतल में।।
पूरी क़ायनात को चाहिए कि आधी आबादी को सुन्दर समतल प्रदान करे।
झकझोरने वाली पोस्ट। विचारणीय।
सबसे बड़ी जरूरत हमे इंसान बने रहने की है.. विचारणीय लेख भावना
💯 सही बात दरिंदो के लिए मानवाधिकार नही दरिंदाधिकार प्रणाली की आवश्यकता है।