आज 24 फरवरी 2022 को चंडीगढ़ के टैगोर थियेटर में हरियाणा के माननीय मुख्यमंत्री श्री मनोहर लाल खट्टर द्वारा अम्बाला के मशहूर शायर नफ़स अम्बालवी जी को उर्दू अदब की खिदमात और बकौल उर्दू अकादमी, आलातरीन अदबी मकाम हासिल करने के लिए साल 2020 के लिए “श्री सुरेन्द्र पंडित सोज़” सम्मान और ‘अकादमी अवार्ड’ से सम्मानित किया गया।
‘चुभन’ की तरफ से आपको बहुत बहुत बधाई।
सुप्रसिद्ध शायर नफ़स अम्बालवी जी आज हमारे पॉडकास्ट में आमंत्रित हैं, जिनका नाम तो कमलेश कौशिक है, लेकिन वे नफ़स अम्बालवी के नाम से ही जाने जाते हैं।आप पेशे से चिकित्सक हैं।
तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह जी द्वारा सम्मान प्राप्त करते हुए
जब आप इलाहाबाद में नौवीं दसवीं में पढ़ते थे, तभी से कुछ कुछ लफ़्ज़ों की जोड़ तोड़ करने लगे थे। हालांकि उनके घर का माहौल तो किसी भी तरह की अदबी आबो हवा से महरूम था। उनके पिता मिलिट्री के अफ़सर थे, उनकी नज़र में कला कोई भी हो, वह वक्त की बरबादी के सिवा और कुछ न थी, परंतु तमाम पाबंदियों के बावजूद उनकी दिलचस्पियां शायरी, पेंटिंग्स, संगीत आदि की तरफ बढ़ती ही चली गईं।
शुरुआती दौर में आपने हिन्दी की आज़ाद नज़्में लिखने की कोशिश की, फिर धीरे धीरे उनका ग़ज़ल से इश्क़ बढ़ता गया। शुरू में कुछ कहानियां और कॉलेज में कुछ नाटक भी आपने लिखे। 1984 में एक नाटक ” अंधी गलियां ” भी लिखा और कुरुक्षेत्र युनिवर्सिटी में हुए ज़ोनल यूथ फेस्टिवल में मंचित भी किया। जिस के लिए उन्हें ” बेस्ट एक्टर ” और नाटक को “बेस्ट स्क्रिप्ट ” का पुरुस्कार भी मिला। एक नज़्म ” मील का पत्थर ” को सर्वश्रेष्ठ कविता का पुरस्कार भी प्राप्त हुआ। उन्हें संगीत का शौक बचपन से ही था। बांसुरी और माउथ ऑर्गन वे आज भी बजाते हैं।
1986 में मेडिकल की पढ़ाई खत्म होने के साथ ही प्रैक्टिस की व्यस्तता के चलते शायरी का सिलसिला लगभग खत्म सा हो गया था। आपकी ज़िन्दगी भी सिर्फ मरीजों और अस्पताल में उलझ कर रह गई।
उन्ही दिनों अम्बाला में, जहां वे रहते हैं, हर साल एक बहुत ही आलीशान इंडो पाक मुशायरा होता था, उसमें दुनिया भर के बड़े बड़े शायर शरीक होते थे। उनमें कुछ नाम हैं अहमद फ़राज़, कैफ़ी आज़मी, सागर खैय्यामी, फैज़ अहमद फैज़, निदा फ़ाज़ली, वसीम बरेलवी, बशीर बद्र, शीन काफ निज़ाम, वगैरह। नफ़स साहब भी मुशायरा सुनने वहां जाते थे ।
वहीं आपको डॉ बशीर बद्र साहब से मिलने का मौका मिला। उनकी हौसला अफजाई ने उन्हें एक बार फिर शायरी की तरफ मोड़ दिया और आपने 2004 में फिर एक बार अपना शायरी का सफ़र शुरू किया। इस तरह शायरी को फिर से शुरू करने में 18 बरस गुज़र गए।
आपने अपना पहला मुशायरा 2005 में कुरुक्षेत्र के एक गांव ‘ अमीन ‘ में पढ़ा।
आपने उर्दू कैसे सीखी, इस बात के जवाब में आपने बताया कि,
“एक दिन मुशायरे से लौटते हुए हाफ़िज़ सहारनपुरी साहब (मरहूम) जो कि एक बहुत अच्छे शायर थे, ने मुझ से कहा कि आप अच्छी शायरी करते हैं लेकिन अगर आप उर्दू भी सीख लें तो आपकी शायरी और भी खूबसूरत हो सकती है। मुझे उनकी बात जंच गई और मैंने उर्दू सीखने की ठान ली। आपको हैरत होगी कि मैंने सिर्फ दस दिन में थोड़ा थोड़ा उर्दू पढ़ना सीख लिया था। फिर जामिया मिलिया इस्लामिया, देहली से एक कोर्स भी कर लिया। इस रहनुमाई के लिए मैं हाफ़िज़ साहब का हमेशा शुक्रगुजार रहूंगा। अल्लाह उन्हें अगली दुनिया में आला मकाम अता फरमाए। आमीन।”
उसके बाद उनकी शायरी को बहुत सराहा गया। 2006 के बाद जो शायरी और मुशायरों का सिलसिला शुरू हुआ वह अब तक जारी है। हिंदुस्तान ही नहीं बल्कि विदेश में भीआपको बहुत सम्मान मिला।
उर्दू और हिंदी अदब के कुछ बड़े नाम जिनके साथ नफ़स साहब को मुशायरा पढ़ने का सौभाग्य प्राप्त हो चुका है,
वह नाम हैं….
डॉ. बशीर बद्र, गोपाल दास नीरज, मुनव्वर राणा, वसीम बरेलवी, राहत इंदौरी, डॉ. राजेश रेड्डी, निदा फ़ाज़ली, अशोक चक्रधर, मख़मूर सईदी, हसीब सोज़ बदायूंनी, आज़ाद गुलाटी, इकबाल अशहर, अज़हर इनायती, शकील आज़मी, मुज़फ़्फ़र रज़मी, सरदार पंछी, कुंवर बेचैन …..आदि।
✳️ प्रकाशित पुस्तकें :
1. ख्वाबों के साए ( देवनागरी में ) 2004
2. सराबों का सफ़र ( उर्दू में ) 2011
इसे हरियाणा उर्दू अकादमी पुरुस्कार से भी
नवाज़ा गया ।
3. सराबों का सफ़र ( देवनागरी में ) 2011
✳️पुरूस्कार एवम् सम्मान :
डॉक्टर नफ़स अम्बालवी जी को उर्दू साहित्य के लिए भारत के अनेक राज्यों में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। कुछ पुरस्कारों का उल्लेख निम्नलिखित है।
1. भगवान धनवंतरी अवार्ड , वर्ष 1992, दिल्ली।भारत के पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह जी द्वारा चिकित्सा के क्षेत्र में निस्वार्थ सेवाओं के लिए दिया गया।
2. शहीद लाला जगत नारायण पुरस्कार, वर्ष 2007
हिन्द समाचार ग्रुप ऑफ न्यूज़ पेपर्स، जालंधर,
पंजाब की तरफ से दिया गया।
3. फ़रोग़ ए उर्दू अवार्ड, वर्ष 2012, मलेरकोटला,
पंजाब अंजुमन इत्तेहाद ए मिल्लत, मलेरकोटला,
पंजाब की तरफ से।
4. उर्दू अकादमी पुरुस्कार वर्ष 2017,
शायरी संग्रह “सराबों का सफर” के लिए हरियाणा उर्दू अकादमी, पंचकूला की तरफ से।
5. कला एवम् संस्कृति सम्मान वर्ष 2017 कला एवम् संस्कृति विभाग, हरियाणा सरकार की तरफ से।
6. एम के साहित्य अकादमी अवार्ड वर्ष 2018
एम. के. साहित्य अकेडमी, पंचकूला, हरियाणा
की तरफ से।
7. लिविंग लैजेंड अवार्ड, वर्ष 2021
बी बी एंटरटेनमेंट, मुंबई, महाराष्ट्र की तरफ से
8. दुर्रे – नायाब सम्मान, वर्ष 2021
परवाज़ ए ग़ज़ल, फरीदाबाद की तरफ से
9. साहित्य अकादमी पुरुस्कार 2022
वर्ष 2020 के सर्वश्रेष्ठ उर्दू शायर के लिए।
( हरियाणा साहित्य अकादमी की तरफ से।)
नफ़स अम्बालवी जी की शायरी और शख्सियत के बारे में उर्दू अदब की कुछ मशहूर हस्तियों ने उनकी किताब ” सराबों का सफ़र “, जिसे हरियाणा उर्दू अकादमी की तरफ से अकादमी पुरूस्कार से भी नवाजा गया, की भूमिका लिखते हुए जो कुछ कहा है, उसे मैं देना चाहूंगी…..
◾ *जनाब मुनव्वर राना :*
” नफ़स अम्बालवी की शख्सियत में लखनवी और लाहौरी नमक का इम्तिजाज़ ( मिश्रण ) है। पहली बार उनसे मिल कर ऐसा महसूस होता है जैसे हम ज़माना ए क़दीम ( पुराना ज़माना ) की उर्दू तहज़ीब से मिल रहे हों। शख्सीयत के रख रखाव का ये मौसम अब ख़ाल ख़ाल (कहीं कहीं) ही देखने को मिलता है। उन्हें पढ़ते हुए मुझे पंजाब की सरसब्जो शादाब और उजली सुबह का एहसास होता है। रेगिस्तान के सीने से फूटते हुए इस चश्मे का हमें दिल से इस्तकबाल करना चाहिए।”
पेशा ए चारागरी के सबब उनकी आंखें आंसुओं के नमक से ना आशना हैं लेकिन महरूम नहीं हैं। वो अपने आंसुओं को बर्दाश्त की दीवार से यूं रोके रहते हैं जैसे चट्टानें किसी चश्मे को उबलने नहीं देती। सराबों का सफ़र करते हुए मुझ जैसे तश्ना अदब को प्यास के सामने शर्मिंदा नहीं होना पड़ा।
शायद यही सबसे बड़ी खूबी नफ़स अम्बालवी के कलाम में है। देहली और लखनऊ की ज़बान और मुहावरों को हरियाणा में बैठे हुए इस शायर ने जिस एहतराम और ज़िम्मेदारी से बरता है वो काबिले सताइश है।
◾ *जनाब बशीर बद्र :*
नफ़स अम्बालवी की हर ग़ज़ल में ऐसे शेर मिल जाते हैं जो अच्छी शायरी का नमूना हैं। बरती हुई ज़िन्दगी नज़र आती है और हल्के हल्के ख़ाब भी हैं जो हमारे बच्चों के जरिए उर्दू में हकीक़त कहलाएंगे। मैंने अक्सर उनकी ग़ज़लों को पढ़ा है। मुझे यकीन है कि हिंदुस्तान और पाकिस्तान की नई ग़ज़ल में नफ़स अम्बालवी की किताब ” सराबों का सफ़र ” को अपना माना जाएगा।
◾ *जनाब मुज़फ़्फ़र रज़्मी :*
नफ़स अम्बालवी के मज्मूआ ए कलाम ” सराबों का सफ़र ” की बेश्तर ग़ज़लों को पढ़ने का मौका मिला। उनकी तकरीबन तमाम ग़ज़लें अफ़सुर्दा ख़यालात में भीगी हुई और पामाली ए फ़िक्र से पाको-साफ़ हैं। उनके अशआर में रवायत कि चाशनी भी मिलती है और जदीद शायरी का असर भी।
मुझे यकीन है कि डॉक्टर नफ़स अम्बालवी की बेहतरीन शायरी इस बात की अलामत है कि हमारे मुल्क में उर्दू ग़ज़ल का मुस्तकबिल किसी तरह तारीक नहीं है और जो कलम हम जैसे ज़ईफ़ हाथों से छूटेगा तो यकीनन नई नस्ल के मज़बूत हाथों में पहुंच कर अपने कमालात दिखाएगा।
◾ *जनाब सरदार पंछी :*
जनाब नफ़स अम्बालवी बेहद हस्सास और संजीदा इंसान हैं। उनका कलाम पढ़ते वक्त कारी अपने आप को कहकशां के झूले में झूलता हुआ महसूस करता है। क्योंकि उनके कलाम में बलाग़त, जिद्दत और मुहावरा बंदी का सुरूर है। नफ़स अम्बालवी के कलाम में आवर्द भी आमद जैसा है। ये वस्फ़ बहुत कम शौरा के कलाम में पाया जाता है।
◾ *जनाब कुंअर बेचैन :*
जब भी देखा तो किनारों पे तड़पता देखा,
ये समंदर तो मेरी प्यास बुझाने से रहा।
इस शेर के कहने वाले सम्माननीय शायर डॉ नफ़स अम्बालवी को बहुत बहुत बधाई। जिस में उन्होंने नए जाविए से एक ओर समंदर को किनारे पर तड़पते देखने की बात की तो दूसरी ओर अपनी प्यास को यूं ही बरकरार रहने की बात की।
कविता स्थितियों को नए दृष्टिकोण से देखने का नाम है, इस उक्ति को ये शेर चरितार्थ करता हुआ दिखाई देता है।
आज शायर नफ़स अम्बालवी जी हमारे साथ होंगे।उनकी शायरी की यही विशेषता है कि उसे सुनते ही सुनने वाले को यही लगता है कि अरे, मैं भी तो यही सोच रहा था और उनकी ग़ज़लों और नज़्मों को तो हम उनसे सुनेंगे ही, साथ ही उनके आरंभिक जीवन और अदबी सफर के बारे में भी उनसे ही जानेंगे।
very nice
and thanks 😊
Great Nafas sahab.
डॉक्टर नफस अंबालवीसाहब आपको बहुत बहुत मुबारकबाद। आपकी बेमिसाल शायरी फेसबुक पर पढ़ती रहती हूं। आपने उर्दू ग़ज़ल को जो वकार और मेयार बक्शा है वहकाबिले तारीफ है आपके मज़बूत हाथों में आकरउर्दू शायरी का मुस्तकबिल रौशन हो गयाहै। उर्दू के अज़ीम शायरों ने आपकी शायरी के मुताल्लिक जो तब्सरेलिखेऔरपज़ीराईकीआप उसके मुस्तहिक हैं। अल्लाह आपके इल्म व कमालात में मजीद इज़ाफ़ा फरमाये।सलामत रहिए शादोआबाद रहिए। आमीन।
बहुत मुबारक
बेमिसाल मुकाम हासिल किया है आपने
Without Urdu background your achievements are amazing . Wishing you more .