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लोहड़ी दी लख-लख बधाइयाँ

एक नहीं सैकड़ों देश-विदेश के महान लोगों के मुंह से मैंने सुना है कि भारत विविधता में एकता से भरा- पूरा देश है।हम सौभाग्यशाली हैं कि एक ऐसे देश के वासी हैं जहाँ हर पर्व मिलजुल कर विभिन्न तौर-तरीकों से और सबसे बड़ी बात कि ऋतु और मौसम के अनुसार मनाया जाता है इसलिए हमारे हर पर्व का एक वैज्ञानिक आधार होता है।

आज लोहड़ी का पावन पर्व है और इसे हम प्रति वर्ष बड़े हर्षोल्लास से पौष माह के अंत और माघ महीने के आरम्भ में मनाते हैं।लोहड़ी का नाम सुनते ही मन में प्रसन्नता और उल्लास का जोश भर जाता है।ढोल ताशे पर भांगड़ा और गिद्दा का मनोरम दृश्य का सुखद एहसास इस त्यौहार को लेकर आस्था और विश्वास को और प्रगाढ़ करता है।नवविवाहित जोड़े या संतान सुख की प्राप्ति की ख़ुशी इस पर्व की मस्ती और उल्लास को दोगुना कर देती है।

अब तो इलेक्ट्रोनिक मीडिया और सोशल मीडिया ने पूरे देश क्या पूरे विश्व को जोड़कर रख दिया है जिस वजह से आज हर पर्व और त्यौहार पूरे दश में एक ही तरह मनाया जाने लगा है।आज से दस-पन्द्रह वर्ष पूर्व मुझे याद आता है कि लोहड़ी सिर्फ पंजाबियों का पर्व समझ कर मनाई जाती थी और इसका इतिहास भी यही बताता है कि इसका आरम्भ पंजाब से ही हुआ लेकिन आज भारत के हर कोने में जिस जोश और ख़ुशी से इसे मनाते हैं उसे देख कर पंजाब के लोग भी पीछे रह जाते हैं।इस पर्व को मनाने के पीछे कई कहानियां हैं।कहते है कि दुल्ला नामक एक डाकू था जो अमीरों को लूटकर गरीबों को दान करता था।एक दिन उसके साथी एक विवाहिता को लूटकर उसे अपने साथ ले आये और दुल्ला डाकू के समक्ष पेश किया।यह देखकर वह अपने साथियों पर नाराज़ हुआ और उस लड़की को उसके पिता के घर भेज दिया परन्तु पिता ने उसे स्वीकार करने से मना कर दिया।तब उसे उसके ससुराल पक्ष को भेजा गया लेकिन उन लोगों ने भी अपनाने से मना कर दिया।तब दुल्ला ने उसे अपनी बेटी का दर्जा देकर लोहड़ी के दिन ही बड़े धूमधाम से उसकी शादी की।इसीलिए पंजाबी परिवारों में इस दिन ‘दुल्ला भट्टीवाला’ गीत गाया जाता है और इस गीत में उसके प्रति आभार भी व्यक्त किया जाता है क्योंकि पंजाब में दुल्ला को बहुत सम्मान से देखा जाता है और पसंद किया जाता है।पारम्परिक गीत-

“सुन्दर मुंदरिये तेरा कौन विचारा हो दुल्ला भट्टी वाला हो….

दुल्ले धी(बेटी)व्याई भर-भर शक्कर आई….

इस गीत पर लोग नृत्य करते हैं तो वही स्वादिष्ट पकवानों की महक भी माहौल में घुली रहती है।गीतों के साथ आग में रेवड़ी मूंगफली,पट्टी और मक्का के दाने भूनकर डाले जाते हैं।इस दौरान खेतों में फसलों के लहलहाने की ख़ुशी किसानों के चेहरे पर देखते ही बनती है।इस त्यौहार को अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है।पंजाब में इसे ‘लोई’ भी कहा जाता है।इसके पीछे यह मान्यता है कि संत कबीर की पत्नी का नाम लोई था।उन्हीं के नाम पर इसे ‘लोई’ भी कहा जाने लगा।कई जगहों पर इस पर्व को ‘लोह’ कहकर भी बुलाया जाता है।जैसा कि हम सभी जानते हैं कि लोह का अर्थ लोहा होता है।लोहे को यहाँ तवे से जोड़कर देखा जाता है।लोहड़ी के अवसर पर पंजाब में नई फसल काटी जाती है।गेंहू के आटे से रोटियां बनाकर लोह अर्थात तवे पर सेंकी जाती हैं।

इस त्यौहार से जुड़ी एक और कथा यह भी है कि होलिका और लोहड़ी दो बहनें थीं।लोहड़ी अच्छी प्रवृत्ति वाली थी।पंजाब में उसकी पूजा होती थी तो उसी के नाम पर वहां लोहड़ी का त्यौहार मनाया जाता है।इस दिन लोग (पंजाब में अधिकतर) रात में घर के आँगन में एकत्रित होते हैं और लकड़ियों तथा उपलों से आग जलाकर उसके चारों तरफ ढोल बजाकर नृत्य करते और खुशियाँ मनाते हैं।हिन्दू धर्म में ऐसी मान्यता है कि अग्नि में जो भी डाला जाए वह हमारे पितरों तक पहुँच ही जाता है तो इसी आस्था के साथ लोहड़ी के दिन पूरा परिवार जलती हुई अग्नि की परिक्रमा करता है और नई फसल गेंहू की बालियों से उसकी पूजा करता है।इस दिन तिल की बनी वस्तुएं जैसे रेवड़ी गजक,भुग्गा आदि खाया जाता है और पितरों तक पंहुचाने के उद्देश्य से अग्नि में भी इसके दाने डालने की परम्परा है।

अंत में मैं तो बस यही कहना चाहूंगी कि इस पर्व से जुड़ी चाहे कोई भी कथा हो,हर कथा अपने में हर्ष और उल्लास तथा दूसरों के लिए सुख-सम्पन्नता और भलाई का भाव लिए हुए है और इसी भाव से इस त्यौहार को मनाना भी चाहिए।मुझे अपने बचपन के दिन तो यही याद आते हैं जब पूरा संयुक्त परिवार एक साथ मिलजुल कर नाचते गाते हुए इसे मनाता था और बड़े-बुजुर्गों का आशीर्वाद लेना इस दिन सबसे आवश्यक माना जाता था।पंजाबी किसानों के लिए तो यह पर्व इसलिए भी इतना पावन पवित्र है क्योंकि लोहड़ी के अगले दिन से यहाँ नव वर्ष का आरम्भ माना जाता है।इस मौके पर नई फसल की पूजा की जाती है।इस समय गन्ने की फसल की कटाई भी की जाती है इसीलिए नई फसल के गुड़ का भी इस अवसर पर प्रयोग किया जाता है।इतनी सारी खुशियाँ और सकारात्मकता समेटे इस पावन और हर्षोल्लासमय त्यौहार की आप सबको एक बार फिर लख-लख बधाइयाँ।

5 thoughts on “लोहड़ी दी लख-लख बधाइयाँ

  1. जैसे जैसे लोहड़ी की आग तेज हो,वैसे वैसे हमारे दुखों का अंत हो

    लोहड़ी का प्रकाश आपकी जिंदगी को प्रकाशमय कर दे

    लोहड़ी की आपको सपरिवार ढेर सारी शुभकामनाएं

  2. सुप्रभात, आपको व आपके परिवार को लोहड़ी की हार्दिक शुभकामनाये 🙏🙏

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