यह कैसा संयोग है कि जब मैं बीती रात में लगभग दो बजे इसी कश्मीर की समस्या और पाक समर्थित आतंकवाद पर अपना लेख पोस्ट कर रही थी उसी के लगभग डेढ़ घंटे बाद जैसा कि वायुसेना के सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि साढ़े तीन बजे भारतीय वायुसेना ने नियंत्रण रेखा के पार आतंकवादी कैम्पों पर हमला बोला और उन्हें पूरी तरह तबाह कर दिया है।इन हमलों में जो जैश के आतंकी मरे हैं, वे जैश सरगना मसूद अजहर के रिश्तेदार भी हैं,इससे जैश की रीढ़ की हड्डी ही टूट गई है।उनके अलावा और भी आतंकवादी मारे गये हैं जिनकी संख्या के बारे में अभी आधिकारिक तौर पर कुछ कहा नही गया है।यह बात तो हमारी सरकार भी कहती है,हमारी सेना भी और हमारे देश के नागरिक भी कि हम स्वयं एक शांतिप्रिय देश हैं और हिंसा से हमारा दूर-दूर तक नाता नही है और पाकिस्तान के नागरिकों की जान जाये ऐसा हमारा उद्देश्य नही होता लेकिन उधर से यह जो आतंकवादी संगठन चलाए जा रहे हैं और इनके लोग आकर हमारे कश्मीर क्या पूरे देश में बदअमनी फैलाते हैं तो उसका भी तो कोई उपाय होना ही चाहिए न और जैसा की अहिंसा का पूरी तरह समर्थन करने वाले गांधीजी ने कहा था “जहाँ केवल कायरता और हिंसा में से एक का चुनाव करना है वहां मैं हिंसा को चुनुँगा।कायर की भांति अपने अपमान का विवश साक्षी बनने की अपेक्षा भारत के लिए अपने सम्मान की रक्षार्थ शस्त्र उठा लेना मैं ज़्यादा अच्छा समझूंगा।लेकिन मेरा विश्वास है कि अहिंसा हिंसा से अत्यधिक श्रेष्ठ है।” सही बात है अहिंसा कायरों की ढाल नही वरन वीरों का आभूषण होनी चाहिए और ऐसा ही हमारे देश ने आज कर दिखाया है। पाकिस्तान की तरह कायराना हरकत नही की कि निर्दोष जनता या सैनिकों पर वार किया हो बल्कि स्वयं इन हमलों की ज़िम्मेदारी लेने वाले आतंकियों को मौत के घाट उतरा।हमारे सैनिकों को नमन है।
भारत-पाक बनने पर निदा फ़ाज़ली की कही यह पंक्तियाँ आज मेरे ज़ेहन में ताज़ा हो जाती हैं –
सात समंदर पार से,कोई करे व्यापार
पहले भेजे सरहदें,फिर भेजे हथियार ।
कश्मीर के हालात विगत कई वर्षों से क्या हो गये हैं यह तो कोई छुपी बात नही है और इसकी जड़ में पाक समर्थित आतंकवाद ही है यह भी किसी से छुपा हुआ नही है।जो स्थान धरती का स्वर्ग कहा जाता था और जहाँ के लिए अपने पिछले लेख में मैंने कई छोटी-छोटी आपबीती घटनाओं का ज़िक्र किया है उस स्थान को नरक बनाने में ऐसे ही लोगों ने कोई कसर नही उठा रखी।हमारे कश्मीर के कुछ लोगों के मन इतने गंदे कर दिए गये हैं कि वे खुद को भारत देश का नागरिक ही नही समझते जबकि यहाँ से अलग उनकी क्या दशा होगी यह तो बड़े-बड़े इनके नेता भी समझते हैं लेकिन अपना नाम चलाने को वे वहां की जनता को जिसमे नवजवान ज़्यादा हैं,एक तरह से इस्तेमाल करते हैं।जुलाई 2012 में मेरी बहन अमरनाथ जी की यात्रा पर अपने कुछ साथियों के साथ गई थीं।दिल्ली से श्रीनगर वे लोग टैक्सी से गए।मार्ग में लाल चौक के पास उनकी टैक्सी वाले ने एक कार जो कि धीमी गति से चल रही थी उसके आगे निकलने की कोशिश की तो तुरंत ही उस कार वाले ने ओवरटेक करके उनकी टैक्सी को रोक लिया और गुस्से में बोला, “कुत्ते ये हिंदुस्तान नही कश्मीर है।” ड्राईवर बेचारे ने बिना किसी गलती के तुरंत माफ़ी मांगी।मेरी बहन और उनके साथ गये बाकी के पांच-छः लोग बेचारे बेबस बने सोच रहे थे कि क्या हम वास्तव में धरती के स्वर्ग में हैं?
यह सब बातें सोचने पर मजबूर करती हैं कि क्या हम जानवरों से भी गये गुज़रे हो गये हैं।जल में रहकर मछली भी मगर से बैर नही लेती तो मुसलमानों को भी सोचना होगा कि ठीक है वे किसी की कृपा पर यहाँ नही हैं और यह देश उतना ही उनका भी है जितना हिन्दुओं का लेकिन उतना ही समझें खुद को खुदा न बना लें।कश्मीरी पंडितों पर जो इतना अमानुषिक व्यवहार हुआ वह तो आखिर हमारे कश्मीर के मुसलमानों ने भी किया न।उन नेताओं को भी एक बार सोचना होगा जो मुसलमानों को वोट बैंक समझकर उनकी हर गलती को माफ़ करते जाते हैं जिसके कारण मुस्लमान भारत के नागरिक होकर भी खुद को पराया समझते और हिन्दुओं को चोट पहुंचाते हैं।क्या विदेशी चाहे वे पाकिस्तान,बांग्ला-देश या किसी भी अन्य देश के हों वे विदेशी नहीं हैं?भारत की तरफ गलत नज़र से देखने पर यदि कुछ इनके ख़िलाफ़ किया या कहा जाता है तो इस देश के कुछ मुसलमानों को बुरा क्यों लगता है?उन्हें तो अपने देश के हित में सोचकर साथ देना चाहिए न कि यहाँ के लोगों को धमकी या बदला लेने की बात करनी चाहिए।वसीम बरेलवी के इस शेर से आज की बात ख़त्म करना चाहूंगी—
सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा….
कश्मीर सिर्फ़ हमारा है। सेना जी जान से इसे सुरक्षित रखने में लगी है।हिन्द की सेना के जवानों और उनके परिवार वालों को शत शत नमन।
जय हिंद जय भारत ।।