साहित्य की अनमोल धरोहर : मृदुल कीर्ति जी को जन्मदिन की शुभकामनाएँ

आज, मृदुल कीर्ति जी, जो आधुनिक संस्कृत की पहचान हैं और न सिर्फ संस्कृत साहित्य अपितु हिंदी और ब्रजभाषा की […]

आज, मृदुल कीर्ति जी, जो आधुनिक संस्कृत की पहचान हैं और न सिर्फ संस्कृत साहित्य अपितु हिंदी और ब्रजभाषा की भी विदुषी लेखिका है, उनका जन्म दिन है। देखिए एक अद्भुत संयोग…. उनका जन्म शरद पूर्णिमा के दिन हुआ और अंग्रेजी कलेंडर के अनुसार उस दिन 7 अक्टूबर थी और इस वर्ष भी शरद पूर्णिमा 7 अक्टूबर को ही है।

शरद पूर्णिमा के दिन जन्म का एक विशेष महत्व –

शरद पूर्णिमा के पावन दिवस, मृदुल कीर्ति जी का जन्म होना मात्र एक संयोग नही है, अपितु इस दिन के साथ कुछ न कुछ तो ऐसा विशेष है कि इस दिन जन्म लेने वाला व्यक्ति कुछ ऐसा साहित्य सृजन कर जाता है जो अलौकिक होता है और युगों तक याद किया जाता है।

मीरा बाई का जन्म दिन –

आज महान कृष्ण भक्त और साधिका मीरा बाई जी का जन्म दिन भी है, उनके कृष्ण की भक्ति में लिखे पदों को किसने नहीं सुना पढ़ा होगा ? मुझे ही नही हमारे चैनल से जुड़े बहुत से लोगों को मृदुल जी में मीराबाई की छवि दिखती है, जैसे वे एक साधिका थीं वैसे ही मृदुल कीर्ति जी का जीवन भी किसी साधिका से कम नही। खुद के बारे में कुछ भी कहना तो वे जानती ही नहीं। हमेशा ज्ञान और आध्यात्मिकता में ही डूबा हुआ मैंने उनको पाया है। मैं निसंकोच एक बात कह सकती हूं कि ऐसे व्यक्तित्व मिलने आज के ज़माने में तो बहुत ही मुश्किल है। तभी मैं उनको साहित्य की अनमोल धरोहर कहती हूं और अपनी धरोहर को संभाल कर रखना हम सबका दायित्व है।

मृदुल जी ने मुझे आज ही बताया कि 2 वर्ष पूर्व आपने वृंदावन जाकर मीरा मंदिर में अपना जन्मदिन मनाया था या यूं कहें कि मीराबाई जी से आशीर्वाद लिया था।

वृंदावन में मीरा मंदिर में मृदुल कीर्ति जी अपने जन्म दिन के दिन आशीर्वाद लेते हुए।👆मीरा मंदिर वृंदावन में अपना जन्मदिन मनाते हुए मृदुल कीर्ति जी।

महर्षि वाल्मीकि जयंती –

आज ही के दिन महर्षि वाल्मीकि जी की भी जयंती है, उनको कौन नही जानता ? महर्षि वाल्मीकि का साहित्यिक और सांस्कृतिक दृष्टि से बहुत सम्मान है। उन्हें संस्कृत साहित्य का आदि कवि या प्रथम कवि माना जाता है, जिन्होंने रामायण की रचना की।

मृदुल कीर्ति जी का साहित्य के क्षेत्र में अप्रतिम योगदान –

ऐसे ही हमारी मृदुल कीर्ति जी ने आर्ष वैदिक ऋषियों के प्रणीत ग्रंथों के मूल संस्कृत ऋचाओं का हिंदी काव्यानुवाद किया और इन ग्रंथों को जन-जन तक पहुंचाने का महती कार्य किया।उनके इस कार्य के लिए आने वाली पीढियां, उनकी ऋणी रहेंगी। यहां मुझे यह भी कहना है कि उन्होंने तो अपना बहुत कुछ ज्ञान के रूप में हम सबको दिया, अब उसे आने वाली पीढ़ियों तक सही रूप में पहुंचाना हम सबका और साथ मे हमारी सरकार का भी दायित्व बनता है।

आज के दिन मृदुल कीर्ति जी को अनंत शुभकामनाएं –

हम आज के दिन आपके लिए ईश्वर से प्रार्थना करते है कि आप शतायु हों और स्वस्थ और प्रसन्न रहते हुए ऐसे ही साहित्य-सृजन करती रहें। आप जानती है मैम कि मेरे मन में आपके लिए क्या स्थान है और मैं कितना आपको मानती हूं। निसंदेह आपने भी मुझे बहुत स्नेह आशीर्वाद दिया है।

उपनिषद के एक मंत्र का पाठ –

आज के विशेष दिन उनकी किस रचना का पाठ प्रस्तुत करुं, मुझे समझ ही नही आ रहा, उपनिषदों में ब्रह्म की पूर्णता का एक मंत्र है,

“पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥”

यह प्रसिद्ध मंत्र, सार्वभौमिक पूर्णता और शांति की अवधारणा को दर्शाता है। इस मंत्र का मृदुल कीर्ति जी ने जो अनुवाद किया उसे सुनें –

“परिपूर्ण पूर्ण है पूर्ण प्रभु, यह जगत भी प्रभु पूर्ण है,
परिपूर्ण प्रभु की पूर्णता से पूर्ण जग सम्पूर्ण है,
उस पूर्णता से पूर्ण घट कर पूर्णता ही शेष है,
परिपूर्ण प्रभु परमेश की यह पूर्णता ही विशेष है।”

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