👆🏿ओज और जोश से भरी रचनाओं को सुनें और वीर रस में डूब जाएं।
स्वतंत्रता का वरदान – भारत
लंबी पराधीनता के बाद भारत को 15 अगस्त 1947 के दिन स्वतंत्रता का वरदान मिला। 15 अगस्त एक राष्ट्रीय अवकाश है। यह दिन प्रत्येक नागरिक को वीर स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा किये गए बलिदान को याद करके मनाना चाहिए, जिन्होंने हंसते हंसते भारत माता के लिए अपने जीवन का सर्वोच्च बलिदान किया।
कोई भी देश हो सभी के लिए स्वतंत्रता का बहुत मूल्य होता है। स्वतंत्रता, जो सभी देशवासियों को अपनी शर्तों पर जीने की सुविधा देती है, उन्हें वह सब कुछ करने का अधिकार देती है, जो वे करना चाहते हैं, परंतु यह स्वतंत्रता उस समय अभिशाप बन जाती है, जब राष्ट्र जीवन के संचालन के लिए आवश्यक नियम भी नजरअंदाज कर दिए जाएं।
देश की अखंडता के लिए प्रयास –
हमारे देश में भी अब एक ऐसी सोच विकसित हो गई है, जिसमें अपने ही देश की कमियों और बुराइयों के सिवा किसी को और कुछ दिखता ही नहीं, परंतु हमें यह नही भूलना चाहिए कि यदि हमें अपनी अखंडता को खंडित होने से बचाना है तो स्वयं को “एक” रखने की ओर प्रयास करना होगा। यदि हम अधिकार चाहते हैं, तो अपने कर्तव्यों का पालन करना भी हमें अवश्य आना चाहिए।
देश की उन्नति के लिए प्रयास
अतः आज जब हम अपना 79 वां स्वतंत्रता दिवस (15 अगस्त) मना रहे हैं तो सिर्फ इसे एक समारोह या उत्सव तक ही न सीमित रखें, वरन यह संकल्प लें कि सदैव देश हित में संलग्न रहेंगे और अपने कृत्यों से देश को विश्व स्तर पर ले जाने का पुरजोर प्रयास करेंगे न कि ऐसा कुछ हमसे हो जिससे कि विश्व-पटल पर हमारा सर शर्म से झुके।
इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखते हुए हमने स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर “चुभन” के पटल पर एक ऐसे कवि को आमंत्रित किया, जिनका नाम लेते ही वीर रस की बात हमारे दिमाग मे स्वाभाविक रूप से आ जाती है।
वीर रस के कवि ज्ञानेंद्र जी
आप हैं ज्ञानेंद्र जी, जिन्होंने अहिन्दी भाषी क्षेत्र में अपने आप को स्थापित किया। मुझे ऐसा लगता है कि दक्षिण भारत के गिने चुने वीर रस के कवियों में आपका नाम आता है। ज्ञानेंद्र जी की रचनाएं हमें प्रेरित करती हैं कि हम अपने भारतीय होने पर गर्व करें और उनकी रचनाओं को सुनते ही दिल देशभक्ति के भावों से भर उठता है।
अजय “आवारा” –
हमारे साथ अजय “आवारा” जी भी होंगे, जिनसे आप सब भली भांति परिचित हैं। अजय जी न केवल कवि हैं, बल्कि एक चिंतक विश्लेषक भी हैं। उनकी अपनी एक शैली ही है कि वे सदैव दर्शकों – पाठकों के समक्ष कुछ प्रश्न रख कर जाते हैं, जिससे कि वे उन प्रश्नों के उत्तर ढूंढें। आज के कार्यक्रम में भी कुछ प्रश्न उठाए गए, कुछ के उत्तर दोनों विद्वान कवियों ने देने का प्रयास किया तो वहीं कुछ प्रश्न ऐसे भी रहे जिनके उत्तर शायद अभी अनुत्तरित हैं।
उपसंहार –
अतः हमें अपने देश की एकता और अखंडता को कायम रखते हुए, उन सभी प्रश्नों के उत्तर ढूंढने हैं और देश को आगे, और आगे और आगे ले जाना है।