बीते दिनों की घटनाएं और वर्तमान की पीड़ा
बीते कुछ दिनों में हमने बहुत कुछ देखा और अभी भी हालात कुछ बहुत अच्छे नही हैं। आपलोग सब समझ ही रहे होंगे। पहलगाम हादसे ने हमें अंदर तक झकझोर दिया। कोई शब्द ही नही रहा उस क्रूरता, बर्बरता, नृशंसता को कहने के लिए।
हम सब जैसे पत्थर के हो गए, अब ज़रा कल्पना कीजिये उन काले दिनों की, जब 90 के दशक में हमारे देश के इतिहास में एक काला अध्याय जुड़ा था। जी हां, मेरा मतलब कश्मीरी हिंदुओं के साथ उस समय जो बर्बरता और क्रूरतापूर्ण आचरण किया गया, उसके लिए भी कोई शब्द हो ही नहीं सकता। समकालीन हिंदी कविता के सशक्त हस्ताक्षर अग्निशेखर जी से इस विषय पर मेरी कई बार बात हुई।
कश्मीरी हिंदुओं की पीड़ा और उनकी उपेक्षा
परंतु सच यह भी है कि हम कभी कश्मीरी हिंदुओं की स्थिति, उनके दुख के साथ खुद को जोड़ ही नही सके या हालात ऐसे बने या बनाए गए कि उन्हें कभी देश की मुख्य धारा से जोड़ा ही नहीं गया या वे जुड़ ही नही पाए…..
देखा जाए तो इन सब प्रश्नों के उत्तर अब मिलने ही चाहिए क्योंकि आज जो कुछ हो रहा है, उसका कारण निसंदेह हमारा कल भी है।
इतिहास से सबक लेने की आवश्यकता
इतिहास से हमेशा सबक लेने की ज़रूरत होती है, न कि उसे दबा छुपाकर रखने की। कश्मीरी हिंदुओं के साथ जो कुछ भी हुआ, उससे सबक लेना तो दूर, उस घटना को दबाने छुपाने के ही प्रयत्न ज़्यादातर होते रहे। पर आज देश जाग गया है। आज लोग जागरूक हो चुके हैं।
‘चुभन’ पर संवाद और अग्निशेखर जी का योगदान
“चुभन” से हमने कश्मीरी विस्थापितों के दर्द, उनकी समस्याएं, उनके भविष्य….इन सब विषयों पर समय समय पर संवाद किए। अभी भी पहलगाम हादसा, फिर उसके बाद के सारे घटनाक्रम पर मेरी वरिष्ठ हिंदी कवि अग्निशेखर जी के साथ बात हुई। उनके दिल का दर्द आज के हालातों को देखकर रोष के रूप में भी प्रस्फुटित हुआ और कहीं आंखें नम कर गया।
अग्निशेखर जी की निर्वासन चेतना
अग्निशेखर जी लाखों कश्मीरी विस्थापितों के मानवाधिकारों व पुनर्वास के प्रश्न पर दशकों से सक्रिय रहे हैं। अलगाववाद और आतंकवाद ने उनके जीवन और उनकी दृष्टि को आमूल बदल डाला। उनकी निर्वासन-चेतना उनके साहित्य में केंद्रीय विषय है। उनकी कई रचनाओं और उनके साथ मेरे संवाद को हम चुभन पर समय समय पर प्रस्तुत करते रहते हैं परंतु आज मैं आपको उनकी एक ऐसी कविता सुनाऊंगी जो कई दृष्टियों से महत्वपूर्ण ही नहीं बल्कि ऐतिहासिक भी है। वर्ष 2001 के जुलाई मास में भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई और पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ के बीच आयोजित दो दिवसीय ‘आगरा शिखर’ में हमारे कवि और एक्टिविस्ट अग्निशेखर जी भी आमंत्रित थे। ताकि वह कश्मीरी विस्थापितों का प्रतिनिधित्व करें।
कवि अग्निशेखर जी ने पाकिस्तान के जनरल परवेज मुशर्रफ से अपनी भेंट के दौरान उन्हें खरी-खरी सुनाई थी जिसे देश-विदेश के मीडिया ने खूब कवरेज दी थी।
उस ऐतिहासिक घटना से संबंधित उनकी एक कविता है –‘आगरा शिखर सम्मेलन में ‘।इस कविता में कवि पाकिस्तानी जनरल परवेज मुशर्रफ से सीधे संबोधित हैं।
पढ़ें यह कविता –
आगरा शिखर-सम्मेलन में
-अग्निशेखर
जनरल,
मेरी नज़रों से मिलाकर नज़रें
कहो इस भरी सभा में
कि झूठ कहता हूँ मैं
जनरल,
मेरी क्या बिसात
एक अदना सच
कह गया मुँह पर तुम्हारा पाप
एक कवि
सताए हुए लोगों का
झाँकता है बेधक तुम्हारी आँखों में
जनरल,
तुम्हारे माथे पर
क्यों पड़ने लगे हैं बल
मैं तो एक सीधा प्रश्न हूँ
ज़िन्दा और ठोस
जिसे खत्म नहीं कर सके
तुम्हारे युद्ध
तुम्हारे खेल
जनरल,
तुमने तारीफ की
हमारे प्रधानमंत्री के प्रीति-भोज की
तुमने कुछ नहीं कहा
रक्त के उस स्वाद के बारे में
जो तुम्हारे जेहादियों के मुँह से लगा है
मेरे निष्पाप लोगो का
जनरल,
मैं सामने हूँ तुम्हारे
मेरी आँखों में आँखें डाल कर देखो,
कितना दयनीय है
तुम्हारा डरा हुआ चेहरा…..
2001