✍️ साहित्य और संस्कृति की धरती: चंदापुर
जनपद रायबरेली परम्परा से साहित्य और संस्कृति का पोषक रहा है, प्रेमाख्यानक काव्य परम्परा के उन्नायक मूल्ला दाऊद, भक्तिकालीन प्रेममार्गी शाखा का सर्वश्रेष्ठ ग्रन्थ पद्मावत के रचयिता मलिक मोहम्मद जायसी, आधुनिक हिंदी के सूत्रधार आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी आदि के साहित्य सृजन ने इस जनपद की धरती को साहित्यिक रूप से उर्वरा बनाया…!!
🎶 संगीत की प्राचीन परंपरा चांदपुर
साहित्य की ही भांति रायबरेली में संगीत की परंपरा भी अत्यंत प्राचीन है, प्राचीन संगीत का प्रारंभ देवोपासना के रूप में है, शनै शनै देवोपासना का यह संगीतमय स्वरूप पर्वों त्योहारों और मांगलिक संस्कारों से जुड़ गया पर संगीत को व्यापकता तब मिली जब रियासतों से इसे संरक्षण मिला…!!
👑 राजा जगमोहन सिंह और तानसेन घराने का आगमन चंदापुर
👆🏾राजा जगमोहन सिंह :चंदापुर:
जो तानसेन घराने को रायबरेली लाए और उन्हें संरक्षण दिया…!!
🌟 स्वर्णिम काल की शुरुआत
रायबरेली के संगीत क्षितिज का स्वर्णिम अतीत तब प्रारंभ हुआ जब सन 1830 में तानसेन घराने के संगीतकार मद्दे ख़ां (1750- 1840)कालपी से रायबरेली आए| आपके संगीत में विलक्षण सम्मोहन शक्ति थी, ख़ां साहब के निधनोपरांत उनके पुत्र आजम खां (1800-1890) ने अपनी स्वर परम्परा को आगे बढ़ाया,आजम साहब के पुत्र उस्ताद मुरौवत खां ( 1870-1950) ने अपनी संगीत साधना से रायबरेली की यश कीर्ति को सारे भारत में फैलाया।
राजा चंद्र चूड़ सिंह : चंदापुर:
आपके समय में उस्ताद मुरौवत खां रहे, आपने उन्हें संरक्षण दिया,चंदापुर में उस्ताद को एक बड़ा मकान और मकान के साथ एक संगीत शिक्षा के लिए बड़ा संस्थान बनवा कर दिया जहां उस्ताद अपने सैकड़ों शिष्यों को संगीत की शिक्षा दे सकें…!!!
उस्ताद मुरौवत खां: एक युग, एक परंपरा, एक संगीत यात्रा
🎼 चंदापुर रियासत में बिताए गए संगीत के स्वर्णिम चालीस वर्ष
उस्ताद ने अपने जीवन के 40 वर्ष रियासत चंदापुर में बिताए,यहीं पर उस्ताद ने फिल्म संगीतकार नौशाद,पद्मविभूषण उस्ताद गुलाम मुस्तफा खान और सुप्रसिद्ध भजन गायक अनूप जलोटा के पिता भजन सम्राट पुरुषोत्तम दास जलोटा, सितार सम्राट उस्ताद यूसुफ अली खां को अपने शिष्य के रूप में पारंगत कर राष्ट्र में संगीत के भविष्य को सुरक्षित किया, उस्ताद की शिष्य परम्परा में करीब चौदह सौ शिष्य थे…!!
👨🎓 उस्ताद के शिष्य: जिन्होंने भारतीय संगीत को नई पहचान दी
उनके शिष्यों में शामिल थे:
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फिल्म संगीतकार नौशाद
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पद्मविभूषण उस्ताद गुलाम मुस्तफा खान
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भजन सम्राट पुरुषोत्तम दास जलोटा
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सितार सम्राट उस्ताद यूसुफ अली खां
साथ ही, उनकी शिष्य परंपरा में लगभग 1400 शिष्य थे।
रिकॉर्डिंग, अंतरराष्ट्रीय प्रस्तुति और मंदिरों में संगीत सेवा
उस्ताद मुरौवत खां साहब ने अपनी बारह वर्ष की कठोर साधना से सितार की गति को हारमोनियम पर उतारा, भारत में एच एम वी कंपनी के आने पर देश की सर्व प्रथम रिकॉर्डिंग भी उस्ताद मुरौवत खां की हुई,उस्ताद जॉर्ज पंचम के राज्याभिषेक में अपना कार्यक्रम देने लंदन भी गए,उस्ताद धर्म जाति और काल के बंधनों को तोड़कर अठारह वर्षों तक अयोध्या के मंदिरों में और दस वर्षों तक प्रसिद्ध कृष्ण मंदिरों में जाकर अपने संगीत से ईश्वर को रिझाते रहे…!!
संगीत परंपरा को आगे बढ़ाने का प्रयास
उस्ताद के बाद उनकी संगीत परम्परा को उनके पुत्र जुग्गन खां और मुहम्मद अहमद ने आगे बढ़ाने की कोशिश की।
राजा जितेंद्र सिंह – रानी चंद्र कांति सिंह : चंदापुर:
उस्ताद मुरौवत खां के बाद उनके पुत्रों को संरक्षण दिया,उस्ताद के बड़े पुत्र मोहम्मद जकरिया खां (मुग्गन मियां) आजीवन राजा जितेंद्र सिंह जी के साथ रहे, स्व राजा साहब ने इन्हें अपना मुख्तार आम बना रखा था,राजा साहब ने आजीवन इस परिवार का ध्यान रखा और दोनो फसलों पर परिवार की जरूरत के अनुसार राशन देते थे, शादी विवाह या किसी अप्रिय घटना का संपूर्ण दायित्व उठाते थे…!!
🎶 उस्ताद मुरौवत खां की परंपरा का आज और कल
राजा चंद्र चूड़ सिंह स्मारक विद्यालय और रशीद खान का योगदान
उस्ताद मुरौवत खां की शिष्य परम्परा के पद्मभूषण उस्ताद रशीद खान को भी संरक्षण दिया, कलकत्ता विश्वविद्यालय में संगीत का प्रोफेसर बनने के पूर्व उस्ताद रशीद खान को अपने शहरी आवास में कुछ स्थान दिया| जहां उस्ताद ने राजा चंद्र चूड़ सिंह स्मारक संगीत विद्यालय खोला और रायबरेली की नई पीढ़ी को संगीत में पारंगत किया…!!
रियासतों का अंत और संगीत संरक्षण का संकट
किंतु 1947 के बाद नई लोकतांत्रिक व्यवस्था में रियासतें समाप्त हो गईं और इसी के साथ ही साहित्य और संगीत को मिलने वाला रियासती संरक्षण भी समाप्त हो गया इसी के चलते उस्ताद मुरौवत खां के बाद की पीढ़ी को जीने खाने की चुनौतियों का सामना करना पड़ा, विपरीत परिस्थितियों के बावजूद भी इस पीढ़ी ने संगीत को जिंदा रखा और अपनी शिष्य परम्परा के जरिए जनपद को संगीत की नई पीढ़ी दी, वर्तमान में इस परिवार से पद्मविभूषण उस्ताद गुलाम
मुस्तफा खान के साथ ईशा खान और नबी अहमद चुनौतियों को परास्त कर संगीत सेवा कर रहे हैं…!!
एक दौर में अपनी संगीत साधना द्वारा दुनिया के नक्शे पर रायबरेली (चंदापुर) को पहचान देने वाले उस्ताद मुरौवत खां का परिवार अभाव में गुमनामी का जीवन जी रहा है, नई पीढ़ी इस परिवार के वैभव को जानती ही नहीं है,सरकारें परंपराओं को बचाने के सवाल पर मौन हैं और इन्हीं सब के मध्य एक समृद्ध अतीत का अंत हो रहा है जो बहुत दुखद है…!!