हिंदी – दिवस : भाषा का दर्द और राष्ट्रभाषा का अभाव

                  लेखक – अजय “आवारा” लीजिए, एक और “हिन्दी दिवस” आ गया। […]

अजय आवारा।वरिष्ठ कवि और साहित्यकार।हिंदी भाषा और दक्षिण भारत की भाषाओं को जोड़ने का कार्य, सेतु की तरह
                  लेखक – अजय “आवारा”

लीजिए, एक और “हिन्दी दिवस” आ गया। आज कार्यक्रम होंगे, बातें होंगी और कल से फिर वही ढाक के तीन पात। हर विचार कहीं धुंआ हो जाएंगे।

हमारी एक राष्ट्रभाषा भी नहीं –

हिंदी दिवस के दिन सबसे ज़्यादा चुभने वाली बात लगती है कि स्वतंत्रता के इतने वर्ष बीत जाने के बाद भी हमारे देश की एक राष्ट्रभाषा नही है, जबकि हमसे बहुत बाद में आज़ाद हुए देशों की भी एक राष्ट्रभाषा है। यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि भाषा के मामले में हम काफी पिछड़ गए हैं।

कुछ देशों के उदाहरण –

कुछ उदाहरण यहां मैं अवश्य देना चाहूंगा। हमारा पड़ोसी देश श्रीलंका जब स्वतंत्र हुआ तब वहां सिंहली भाषा की स्थिति बहुत खराब थी परंतु एक साल के अंदर श्रीलंका की राजभाषा के पद पर सिंहली भाषा को स्वीकार किया गया। आज से लगभग 100 वर्ष पूर्व फिनलैंड के लोग स्वीडी भाषा मे ही सारे कार्य करते थे, लेकिन अब उनकी अपनी भाषा फिनी ही वहां राजकाज की भाषा है।

अपनी भाषा का प्रयोग –

कई दशकों से मैं यह देखता था कि चीन, रूस आदि देशों के राष्ट्राध्यक्ष जब हमारे देश आते थे, तो यहां उनके सम्मान में आयोजित किसी भी समारोह या वार्ताओं में वे अपनी भाषा का ही प्रयोग करते थे और दुभाषिया उनका अनुवाद करता था परंतु इसके विपरीत हमारे राष्ट्राध्यक्ष जब विदेश जाते थे या अपने देश के भी किसी कार्यक्रम में उन विदेशी मेहमानों के समक्ष, जो अपनी भाषा मे बोल रहे होते थे उनके सामने भी हिंदी न बोलकर अंग्रेजी का ही प्रयोग करते थे। परंतु आज इस स्थिति में बहुत सुधार हुआ है और हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी बहुत गर्व से हर आयोजन में चाहे वह विदेशी भूमि में भी हो, हिंदी भाषा का प्रयोग करते हैं और निस्संदेह हमारा सर भी गर्व से ऊंचा हो जाता है।

पाठकों से एक प्रश्न –

एक सवाल मैं आपके सामने रखना चाहूंगा। क्या आप कोई काम बिना आवश्यकता के करते हैं? नहीं न? अब मेरा सवाल है कि आपकी रोजमर्रा की जिंदगी में हिन्दी कितनी आवश्यक है? हमारे देश में हर एक की अपनी क्षेत्रीय भाषा है, और हर क्षेत्रीय भाषा हर एक व्यक्ति का अभिमान भी है और उस राज्य या क्षेत्र में संवाद की आवश्यकता भी। जैसे दक्षिण के राज्यों की अपनी अपनी भाषा है, तमिल, तेलुगू, कन्नड़ और मलयालम। यहां के लोग सिर्फ इन्ही भाषाओं का प्रयोग करते हैं और मुझे बहुत दुख होता है कहने में भी कि दक्षिण के लगभग सभी राज्यों में हिंदी बोलने वाले लोगों का प्रतिशत बहुत ही कम है।इसका सीधा अर्थ यह हुआ की क्षेत्रीय भाषा हर एक के लिए संवाद की आवश्यकता है।

शिक्षा के क्षेत्र में हिंदी की आवश्यकता –

अब शिक्षा और व्यवसायिक आवश्यकता की बात करें तो प्राथमिक शिक्षा को छोड़ दें तो उच्च शिक्षा बिना अंग्रेजी के सम्भव‌ ही नहीं है। हमारे पाठ्यक्रम भी अंग्रेजी भाषा में ही हैं। इसका सीधा अर्थ यह हुआ कि उच्च शिक्षा की आवश्यकता अंग्रेजी हुई।

रोजगार के क्षेत्र में हिंदी –

अब इससे थोड़ा आगे बढ़ें। आईए अब रोज़गार या नौकरी की तरफ भी एक दृष्टि डाली जाए। क्या आप नौकरी के लिए हिन्दी में अपना विवरण देने की सोच सकते हैं? नहीं न। और यह बताना आवश्यक नहीं है कि साक्षात्कार में किस भाषा को प्राथमिकता दी जाती है। कोई भी इस बात से इन्कार नहीं कर सकता कि नौकरी एवं व्यापार में बेहतर परिणाम एवं स्वीकार्यता के लिए अंग्रेजी एक आवश्यकता है।

सामाजिक प्रतिष्ठा का पैमाना –

बात यहीं समाप्त नहीं होती। समाज में हिन्दी में बातचीत एवं समाजिक प्रतिष्ठा में हिन्दी भाषा एक दम से आड़े आ जाती है। हिन्दी अथवा स्थानीय (क्षेत्रीय) भाषा में यदि हम बात करें तो उसी जगह यदि वही बात अंग्रेजी में कोई करे तो उसे ज़्यादा विद्वान और ज्ञानी माना जाता है, यानि अंग्रेजी के प्रयोग का अभाव पिछड़े पन की निशानी माना जाता है। मैं इस बात को लिख रहा हूँ तो आपको शायद थोड़ा अजीब लग रहा होगा परंतु थोड़ा सा भी अपने अंदर चिंतन करिए तो आपको लगेगा कि सच यही है।

विचारणीय प्रश्न –

अब आप स्वयं सोचिए, आपस में संवाद के लिए क्षेत्रीय भाषा, शिक्षा के लिए अंग्रेजी, और नौकरी रोजगार के लिए अंग्रेजी। तब हिन्दी की आवश्यकता कहां है? क्या इस सवाल पर विचार नहीं किया जाना चाहिए? हिंदी दिवस मनाने की सार्थकता तो तभी है, जब हम इस प्रश्न पर विचार करें।

भविष्य उज्जवल –

वैसे मुझे प्रसन्नता होती है कि कुछ वर्षों से व्यक्तिगत स्तर पर भी लोग इस दिशा में काफी कुछ कर रहे हैं, जैसे आजकल 10-15 लोग एक समूह बनाकर गोष्ठी का आयोजन करते हैं, जिसमें मैंने देखा है कि सिर्फ हिंदी भाषा और साहित्य पर ही चर्चा होती है। कुछ हमारे पुराने साहित्यकार, जिन्हें आज की पीढ़ी भूलती जा रही थी, उनको याद किया जाता है, उनकी एक एक कविता का पाठ सारे उपस्थित लोग करते हैं। इन सब आयोजनों में आज के युवा भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं।

निष्कर्ष –

चलिए आज के दिन संकल्प लें कि अपनी हिंदी को अपनी राष्ट्रभाषा बनाएंगे और अधिक से अधिक हिंदी का प्रयोग करने का प्रयास करेंगे, यही आज “हिंदी दिवस” मनाने की सार्थकता होगी।

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