लिव-इन रिलेशनशिप : व्यक्ति और समाज पर प्रभाव

डॉ. सत्या सिंह पूर्व पुलिस अधिकारी, अधिवक्ता, काउंसलर। 2011 में भारत की तत्कालीन राष्ट्रपति माननीया प्रतिभा पाटिल जी के हाथों […]

लिव-इन रिलेशनशिप

डॉ. सत्या सिंह

डॉ. सत्या सिंह
पूर्व पुलिस अधिकारी, अधिवक्ता, काउंसलर।

2011 में भारत की तत्कालीन राष्ट्रपति माननीया प्रतिभा पाटिल जी के हाथों सम्मानित हो चुकी हैं।

इंडियन एक्सप्रेस की तरफ से 2017 में उन्हें ‘देवी अवार्ड’ से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी ने सम्मानित किया।

आपको सम्मान स्वरूप मिले मेडल, प्रशस्ति पत्र एवं पुरस्कारों से एक कमरा भरा हुआ है।

आप ताइक्वांडो चैंपियन भी हैं।

आधुनिक भारतीय समाज निरंतर बदलते मूल्यों और जीवनशैली का गवाह है। जहाँ एक ओर पारंपरिक विवाह संस्था का आदर्श अब भी मज़बूती से कायम है, वहीं दूसरी ओर युवा पीढ़ी में लिव-इन रिलेशनशिप की प्रवृत्ति तेज़ी से उभर रही है। यह ऐसी स्थिति है जहाँ दो वयस्क बिना विवाह किए, साथ रहते हैं और दाम्पत्य जीवन विवाहित जैसा साझा करते हैं।

हमारे देश में इस रिश्ते की स्वीकार्यता कठिन –

भारत जैसे सांस्कृतिक रूप से संवेदनशील देश में यह विषय केवल कानूनी या व्यक्तिगत नहीं, बल्कि सामाजिक, मानसिक और सांस्कृतिक विमर्श का केंद्र बन गया है। लिव-इन रिलेशनशिप आधुनिक जीवनशैली और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का प्रतीक है, लेकिन भारतीय परंपरा और पारिवारिक संस्कृति में इसे पूरी तरह स्वीकार्यता अभी नहीं मिली है।

इसके सकारात्मक पक्ष –

स्वतंत्रता, समानता और कानूनी सुरक्षा महत्वपूर्ण हैं, पर साथ ही स्थायित्व, सामाजिक स्वीकार्यता और पारिवारिक सामंजस्य की कमी इसके नकारात्मक पहलू हैं। ऐसे में इस रिश्ते को समझने के लिए हम सब को आज निम्न पहलुओं पर गंभीरता से सोचने की ज़रूरत है।

स्वतंत्रता और चुनाव का अधिकार –

लिव-इन संबंध व्यक्ति को जीवनसाथी चुनने की आज़ादी देता है तथा इसमें दोनों साथी आपसी सहमति से बिना किसी सामाजिक या पारिवारिक दबाव के साथ रहते हैं। इससे उन्हें अपने रिश्ते को परखने और समझने का भी किसी हद तक अवसर मिलता है।

भावनात्मक अनुभव और असुरक्षा –

सब कुछ होते हुए भी इसमें विवाह की तुलना में स्थायित्व की कमी होती है। साथी कभी भी अलग हो सकते हैं, जिससे व्यक्ति के भीतर असुरक्षा की भावना बनी रहती है। यह मानसिक तनाव, चिंता और अविश्वास को जन्म दे सकता है।

आर्थिक और व्यक्तिगत संतुलन –

इस रिश्ते में प्रायः आर्थिक स्वतंत्रता अपेक्षित होती है। दोनों साथी अपने खर्च साझा करते हैं, लेकिन कभी-कभी असमानता की स्थिति में संघर्ष बढ़ सकता है।

यौनिकता की स्वतंत्रता और चुनौती –

आधुनिकता में यह संबंध यौनिक स्वतंत्रता का प्रतीक माना जाता है। किन्तु कई बार यह केवल शारीरिक आकर्षण पर आधारित रह जाता है, जिसके विफल होने पर व्यक्ति भावनात्मक शून्यता का शिकार हो सकता है।

समाज पर प्रभाव –

पारिवारिक संरचना पर प्रश्नचिह्न –

भारतीय समाज में परिवार को सामाजिक इकाई माना जाता है। लिव-इन रिलेशनशिप इस इकाई की पारंपरिक संरचना को चुनौती देती है। विवाह से जुड़े संस्कार, उत्सव और जिम्मेदारियाँ इसमें पीछे छूट जाती हैं। यदि परिवार इस संबंध को स्वीकार कर ले, तो जोड़े को सामाजिक सुरक्षा, आत्मविश्वास और मानसिक स्थिरता मिलती है। इससे उनका रिश्ता अधिक संतुलित और टिकाऊ हो सकता है, पर पारंपरिक मूल्यों के कारण अधिकांश परिवार इसे स्वीकार नहीं करते। विरोध की स्थिति में जोड़े को सामाजिक बहिष्कार, पारिवारिक दूरी और मानसिक दबाव का सामना करना पड़ता है, जिससे परिवार का समर्थन या विरोध बच्चों के पालन-पोषण और सामाजिक पहचान पर गहरा प्रभाव डालता है, साथ ही भारतीय परिवार विवाह को पवित्र मानते हैं, इसलिए लिव-इन को अक्सर अस्थिर या अस्वीकार्य माना जाता है।

लिव-इन रिलेशनशिप की सफलता या असफलता में परिवार की स्वीकृति, मार्गदर्शन और दृष्टिकोण निर्णायक प्रभाव डालते हैं।

कानूनी जटिलताएँ –

विवाह की तरह लिव-इन का कोई औपचारिक रजिस्ट्रेशन नहीं होता। अलगाव की स्थिति में अधिकार और जिम्मेदारियाँ तय करने में कठिनाई होती है। वैसे घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 के अंतर्गत लिव-इन में रहने वाली महिला को कुछ हद तक संरक्षण प्राप्त है, लेकिन सभी मामलों में यह साबित करना कठिन होता है कि संबंध “वैवाहिक स्वरूप” का था या नहीं। लिव-इन पार्टनर को वैध जीवनसाथी की तरह संपत्ति में अधिकार नहीं मिलता। अलगाव या मृत्यु की स्थिति में आर्थिक असुरक्षा की समस्या उत्पन्न होती है।

वैसे उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि लिव-इन संबंध से जन्मे बच्चे वैध माने जाएंगे और उन्हें संपत्ति में अधिकार मिलेगा, परंतु समाज में अब भी इसकी स्वीकार्यता कम है, जिससे व्यावहारिक कठिनाइयाँ बनी रहती हैं। कानूनी संरक्षण सीमित होने के कारण परिवार का विरोध या समाज का दबाव संबंधों पर असर डालता है। भारत में लिव-इन रिलेशनशिप को न्यायपालिका ने वैधता और संरक्षण तो दिया है, लेकिन विवाह की तरह स्पष्ट कानूनी ढाँचा न होने से इसमें महिला के अधिकार, संपत्ति, बच्चों की परवरिश और संबंध की स्थिरता से जुड़ी जटिलताएँ बनी रहती हैं।

समाज और कानून के बीच असमंजस –

उच्चतम न्यायालय ने लिव-इन को अपराध नहीं माना और इसे वयस्कों का निजी निर्णय कहा है। परंतु संतान, संपत्ति और विरासत से जुड़े प्रश्न अब भी विवादास्पद हैं। ऐसे मामलों में समाज और कानून के बीच असमंजस बना रहता है।

सांस्कृतिक द्वंद्व –

लिव-इन रिलेशनशिप भारतीय समाज में केवल व्यक्तिगत नहीं बल्कि सांस्कृतिक प्रश्न भी है। यहाँ विवाह को पवित्र बंधन और परिवार की नींव माना जाता है, जबकि लिव-इन इस परंपरा को चुनौती देता है। एक ओर युवा पीढ़ी व्यक्तिगत स्वतंत्रता, समानता और खुलेपन को प्राथमिकता देती है; दूसरी ओर परिवार और समाज विवाह संस्था को नैतिकता और स्थायित्व का आधार मानते हैं। लिव-इन को पश्चिमी जीवनशैली का प्रभाव माना जाता है, जबकि भारतीय संस्कृति सामूहिकता और पारिवारिक बंधनों पर आधारित है।

शिक्षित शहरी वर्ग में लिव-इन धीरे-धीरे स्वीकार किया जा रहा है, पर ग्रामीण और पारंपरिक समाज में इसे अब भी अस्वीकार किया जाता है। विवाहेतर सहजीवन को कुछ लोग “नैतिक विचलन” मानते हैं, जबकि समर्थक इसे “वैयक्तिक अधिकार” और “आधुनिक सोच” कहते हैं।

लिव-इन रिलेशनशिप भारतीय समाज में एक सांस्कृतिक द्वंद्व उत्पन्न करता है, जहाँ परंपरा और आधुनिकता, परिवार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता, तथा सामाजिक मान्यता और वैयक्तिक अधिकार आमने-सामने खड़े दिखाई देते हैं।ग्रामीण और कस्बाई भारत में इसे अब भी नकारात्मक दृष्टि से देखा जाता है। परंतु महानगरों में धीरे-धीरे इसे स्वीकार्यता मिल रही है। यह स्थिति सांस्कृतिक द्वंद्व को जन्म देती है।

परंपरा और आधुनिकता के बीच संघर्ष-

नए सामाजिक मूल्य –

लिव-इन रिलेशनशिप भारत में बदलते सामाजिक मूल्यों का प्रतीक है। यह परंपरागत विवाह संस्था से अलग होकर व्यक्तिगत स्वतंत्रता, समानता और आत्मनिर्णय को प्रमुखता देता है। युवा पीढ़ी अब यह मानने लगी है कि साथ रहने और जीवनसाथी चुनने का अधिकार व्यक्ति का निजी मामला है। इसमें पुरुष और महिला को बराबरी का अवसर और अधिकार मिलते हैं, जिससे लैंगिक समानता का नया मूल्य उभरता है। विवाह से पहले जीवनशैली और स्वभाव को समझने का अवसर मिलना आधुनिक समाज की व्यवहारिक सोच को दर्शाता है।

परंपरागत नैतिकता जहाँ विवाह को ही स्वीकार करती थी, वहीं नए सामाजिक मूल्य नैतिकता को “आपसी सहमति और सम्मान” से जोड़ते हैं। संविधान प्रदत्त स्वतंत्रता और न्यायपालिका के निर्णय इस नए मूल्य को कानूनी आधार प्रदान करते हैं।

लिव-इन रिलेशनशिप भारतीय समाज में उभरते हुए उन नये सामाजिक मूल्यों का द्योतक है जो व्यक्ति की स्वतंत्रता, समानता और व्यवहारिक जीवन-दृष्टि को महत्व देते हैं। हालांकि, यह अभी भी पारंपरिक मूल्यों से टकराव में है।लिव-इन रिलेशनशिप ने समाज को यह सोचने पर मजबूर किया है कि रिश्तों की बुनियाद केवल विवाह ही क्यों हो ? अब रिश्तों में ‘समानता, सहमति और स्वतंत्रता’ जैसे नए मूल्य उभरकर सामने आ रहे हैं।

सकारात्मक पहलू –

हम कह सकते हैं कि यह संबंध विवाह से पहले संगति की परीक्षा का अवसर देता है। साथी एक-दूसरे की आदतों, विचारों और जीवनशैली को गहराई से समझ सकते हैं। इसमें व्यक्तिगत स्वतंत्रता बनी रहती है, और तलाक जैसी कानूनी जटिलताओं से मुक्ति मिलती है। स्वतंत्रता और आत्मनिर्णय – यह व्यक्ति को अपने जीवनसाथी के चुनाव और संबंध को निभाने की स्वतंत्रता देता है। विवाह से पहले साथ रहकर एक-दूसरे के स्वभाव, आदतों और जीवनशैली को समझने का मौका मिलता है। इसमें स्त्री और पुरुष दोनों को बराबरी से अधिकार और दायित्व निभाने का अवसर मिलता है।

सामाजिक या पारिवारिक दबाव के बिना, संबंध को आपसी सहमति से निभाने या तोड़ने की स्वतंत्रता रहती है। यह संबंध परंपरागत बंधनों से मुक्त होकर आधुनिक जीवन मूल्यों जैसे व्यक्तिगत स्वतंत्रता, आत्मसम्मान और खुशी को महत्व देता है। महिलाओं और बच्चों को अब लिव-इन संबंध में भी कुछ हद तक कानूनी अधिकार प्राप्त हैं, जिससे उनका संरक्षण संभव हो पाता है। लिव-इन रिलेशनशिप उन युवाओं के लिए सकारात्मक विकल्प हो सकता है जो परंपरागत विवाह से पहले आपसी तालमेल और स्वतंत्र जीवन को परखना चाहते हैं।

नकारात्मक पहलू –

इसमें स्थायित्व की कमी से रिश्ते जल्दी टूट सकते हैं। सामाजिक अस्वीकृति –

हमारा समाज अभी भी इसे परंपरागत विवाह के विकल्प के रूप में स्वीकार नहीं करता, जिससे जोड़ों को आलोचना और सामाजिक बहिष्कार झेलना पड़ता है। यह संबंध विवाह की तरह कानूनी रूप से बंधा नहीं होता, इसलिए अक्सर अस्थिर और टूटने की संभावना अधिक रहती है। संपत्ति, बच्चों की वैधता और भरण-पोषण से जुड़े मामले कई बार विवाद और कठिनाइयाँ खड़ी कर देते हैं। लिव-इन को परिवार के सदस्य स्वीकार नहीं करते, जिससे भावनात्मक दूरी और संबंधों में दरार आ सकती है। सामाजिक तानों और असुरक्षा की भावना से मानसिक तनाव और असंतोष बढ़ सकता है।

समाज की दृष्टि में अस्पष्ट स्थिति और परिवारिक अस्वीकार्यता के कारण बच्चों के व्यक्तित्व विकास पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है। लिव-इन रिलेशनशिप आधुनिकता और स्वतंत्रता का प्रतीक तो है, लेकिन इसमें सामाजिक स्वीकार्यता की कमी, कानूनी असमंजस और पारिवारिक तनाव जैसी चुनौतियाँ गहराई से मौजूद हैं। इसमें संतान की परवरिश और पहचान की समस्याएँ जटिल हो सकती हैं। समाज में स्वीकार्यता न मिलने से परिवार और रिश्तेदारों के साथ तनाव उत्पन्न होता है। भावनात्मक असुरक्षा और मानसिक दबाव व्यक्ति के जीवन को असंतुलित कर सकते हैं।

भारतीय परिप्रेक्ष्य में लिव-इन रिलेशनशिप का विश्लेषण –

लिव-इन रिलेशनशिप एक अपेक्षाकृत नया और चुनौतीपूर्ण सामाजिक स्वरूप है। यहाँ विवाह केवल दो व्यक्तियों का व्यक्तिगत संबंध नहीं, बल्कि परिवार, परंपरा और सामाजिक मान्यता से जुड़ा हुआ एक स्थायी बंधन माना जाता है। इसलिए लिव-इन रिलेशनशिप को भारतीय परिप्रेक्ष्य में कई स्तरों पर देखा जा सकता है।

सामाजिक दृष्टिकोण –

परंपरागत भारतीय समाज विवाह को ‘संस्कार’ मानता है, जबकि लिव-इन को अक्सर अस्थायी और अस्वीकार्य संबंध के रूप में देखा जाता है। ग्रामीण और पारंपरिक समाज में इसे अनैतिक माना जाता है, वहीं शहरी और शिक्षित वर्ग में इसकी धीरे-धीरे स्वीकृति बढ़ रही है।

कानूनी परिप्रेक्ष्य –

भारतीय न्यायपालिका ने लिव-इन रिलेशनशिप को अपराध नहीं माना है। सुप्रीम कोर्ट ने इसे सहमति से वयस्कों का व्यक्तिगत चुनाव बताया और महिलाओं व बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिए कुछ प्रावधान किए। फिर भी, विवाह जैसी स्पष्ट कानूनी सुरक्षा इसमें उपलब्ध नहीं है।

सांस्कृतिक द्वंद्व –

भारतीय संस्कृति सामूहिकता, पारिवारिक प्रतिष्ठा और सामाजिक स्वीकृति पर आधारित है। ऐसे में लिव-इन रिलेशनशिप व्यक्तिगत स्वतंत्रता और पारंपरिक मूल्य के बीच टकराव पैदा करता है। यही कारण है कि इसे लेकर सामाजिक दृष्टिकोण अभी तक विरोधाभासी है।

नए सामाजिक मूल्य –

शहरीकरण, वैश्वीकरण और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की भावना ने नए सामाजिक मूल्यों को जन्म दिया है। आज के युवा रिश्तों में समानता, स्वतंत्रता और पारदर्शिता को प्राथमिकता दे रहे हैं। लिव-इन इन्हीं मूल्यों की अभिव्यक्ति है।

सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव –

सकारात्मक पक्ष यह है कि यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता और आपसी समझ को महत्व देता है। वहीं नकारात्मक पक्ष यह है कि इसमें अस्थिरता, पारिवारिक असहमति और बच्चों की स्थिति जैसी समस्याएँ गहराई से जुड़ी हैं।
भारतीय परिप्रेक्ष्य में लिव-इन रिलेशनशिप परंपरा और आधुनिकता के बीच का एक द्वंद्व है। जहाँ एक ओर यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता और समानता का प्रतीक है, वहीं दूसरी ओर यह विवाह जैसी सामाजिक संस्था के सामने चुनौती भी खड़ी करता है। भविष्य में इसकी स्वीकृति इस बात पर निर्भर करेगी कि भारतीय समाज किस हद तक बदलते मूल्यों को अपनाता है और कानूनी व्यवस्थाएँ इन्हें किस प्रकार स्पष्ट और सुरक्षित स्वरूप प्रदान करती हैं।

भारत में विवाह केवल व्यक्तिगत नहीं, बल्कि सामाजिक और धार्मिक संस्था है। यहाँ विवाह का संबंध केवल दो व्यक्तियों से नहीं, बल्कि दो परिवारों और पीढ़ियों से जुड़ा होता है। ऐसे में लिव-इन संबंध पारंपरिक ढांचे से अलग खड़े होते हैं। युवाओं के लिए यह प्रयोग और स्वतंत्रता का प्रतीक हो सकता है, परंतु बुज़ुर्ग पीढ़ी इसे नैतिक मूल्यों के विघटन के रूप में देखती है।

शहरी क्षेत्रों में ऐसे रिश्तों की मान्यता –

शहरी भारत में उच्च शिक्षा, करियर और वैश्विक संपर्क के चलते लिव-इन की स्वीकार्यता बढ़ी है। जबकि ग्रामीण समाज अब भी इसे विद्रोही जीवनशैली मानता है। यह अंतर हमारे समाज में बढ़ती मानसिक और सांस्कृतिक खाई को भी उजागर करता है। लिव-इन रिलेशनशिप आधुनिक समाज में विवाह के विकल्प के रूप में देखा जाने लगा है, जिसमें स्त्री और पुरुष बिना विवाह किए साथ रहते हैं। यह व्यवस्था व्यक्तिगत स्वतंत्रता, समानता और परस्पर समझ पर आधारित होती है। इसमें साथी अपनी इच्छा से साथ रहते हैं और जब चाहें अलग भी हो सकते हैं।

भारतीय समाज में इसकी आलोचना –

भारतीय समाज में पारंपरिक दृष्टि से इसे संदेह और आलोचना की नज़र से देखा गया है, क्योंकि यह विवाह संस्था की परम्परागत धारणाओं को चुनौती देता है। फिर भी, शहरीकरण, शिक्षा और बदलते सामाजिक मूल्य इसे स्वीकार्यता की ओर ले जा रहे हैं।
कानूनी दृष्टि से, उच्चतम न्यायालय ने लिव-इन रिलेशनशिप को अपराध नहीं माना है और महिला के अधिकारों, बच्चों की वैधता तथा संरक्षण को लेकर कई महत्वपूर्ण निर्णय दिए हैं।
लिव-इन रिलेशनशिप एक सामाजिक यथार्थ है जो व्यक्तिगत स्वतंत्रता और वैयक्तिक विकल्प को महत्व देता है, किंतु भारतीय सांस्कृतिक परंपरा और पारिवारिक मूल्यों में अभी भी इसकी सीमित स्वीकृति है।

समाज के लिए चुनौती –

लिव-इन रिलेशनशिप व्यक्ति को स्वतंत्रता, प्रयोग और निजी चुनाव का अवसर देती है, परंतु इसके साथ ही मानसिक असुरक्षा, सामाजिक आलोचना और सांस्कृतिक द्वंद्व भी लाती है। समाज के लिए यह एक नई चुनौती है, जहाँ परंपरा और आधुनिकता आमने-सामने हैं।
आवश्यक है कि हम इस विषय को केवल आलोचना या अंधी स्वीकृति के बजाय संवेदनशीलता और विवेक से देखें।

रिश्तों का मूल आधार – विश्वास, सम्मान और जिम्मेदारी –

चाहे विवाह हो या लिव-इन, हर परिस्थिति में समान रूप से आवश्यक है। यदि व्यक्ति इन मूल्यों को निभा सके, तभी समाज इसे स्वस्थ दृष्टि से स्वीकार कर पाएगा। अतः आवश्यकता है कि समाज इसे खुले मन से समझे, और कानून इसे और संतुलित ढंग से नियंत्रित करे ताकि व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सामाजिक व्यवस्था दोनों का सम्मान बना रहे।

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