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परिवर्तन

हममें से शायद ही कोई होगा जो अपने बचपन को याद नही करता होगा।कैसा भी उम्र का वह दौर रहा हो लेकिन उसकी मिठास,उसकी ठंडक और उसमें जो छांव मिलती है वह पूरा जीवन बिता लेने के बाद भी कभी वापस नहीं आ पाती।उसका एक कारण शायद यह भी होता है कि उम्र के उस दौर में ही हम सबसे ज़्यादा मासूम,निर्लिप्त और मस्ती से भरे हुए होते हैं।

जब भी मैं किसी स्कूल के आस-पास से गुज़रती हूँ और छोटे-छोटे बच्चों को  अपनी ओर देखते हुए पाती हूँ तो उनसे बोले बिना रह ही नही पाती क्योंकि उन बच्चों में मुझे मेरा बचपन और अपने बिछड़े हुए साथी याद आ जाते हैं।ऐसे में एक ही बात याद आती है कि क्या कभी उस दौर में हमने यह सोचा था कि हम भी एक दिन बड़े हो जाएँगे और अपने बहुत सारे दोस्तों से भी बिछड़ जाएँगे? न सिर्फ दोस्त ही बिछड़ेंगे बल्कि न जाने क्या-क्या हाथ से छूट जाएगा।इसी भाव को सोचकर काफी समय पहले मैंने एक कविता लिखी थी जिसे आज मैं सभी के लिए और ख़ासकर अपने दोस्तों के लिए प्रकाशित कर रही हूँ।

                    परिवर्तन

विद्यालय का परिसर देखकर,

अनायास ही अपना बचपन याद आता है

वह बच्चों का मुझे देखना,शर्माना-मुस्कुराना,

सब अपना सा ही लगता है।

बच्चों को देखकर याद आता है,

अपना भी वह ज़माना न्यारा,

इस हर चेहरे में दिखता है-

अपने बचपन का कोई साथी प्यारा।

लेकिन नहीं-यह तो नज़रों का धोखा है

मेरे साथी न जाने कहाँ पर होंगे ?

मेरी तरह वे भी मिलने को तड़पते होंगे,

और ज़िंदगी चलाने के उपक्रमों में लगे होंगे।

तरस आती है उस युवा माता पर

जिसकी कल्पना में भी उसका बच्चा कभी बूढ़ा नहीं होता,

लेकिन माता का भाग्य तो ज़रा देखो !

जिसकी गोद का हर बच्चा एक दिन झुर्रियों वाला बूढ़ा ही होता है।

किसी माता के आशीर्वाद भी-

बुढ़ापे के आगमन को रोक नहीं सके।

बुद्ध,महावीर स्वामी,नानक,प्लेटो,अरस्तू भी

झुर्रियोंदार चेहरे के स्वामी बनने से नहीं बच सके।

सन्यासनियाँ तथा माताएँ हैं दोनों मूर्ति की पुजारिन

सन्यासनियाँ पूजती हैं भगवान राम,कृष्ण,शंकर को

माताएँ पूजती हैं शिशुओं को,आशा की प्रतिमा मानकर

परंतु प्रत्येक प्रकार की प्रतिमा अपने भक्त को

निराश कर देती है,उसका हृदय तोड़कर।

समय हर परिवर्तन को स्वीकार करता है,

हमारे भीतर यदि स्वीकार्य भाव होगा

तो हर निराशा का भाव भी आशावादी होगा

और उम्र का हर पड़ाव ही रचनात्मक और सृजनात्मक होगा।

4 thoughts on “परिवर्तन

  1. bachpan ke din bhi kya khoob the….n dosti ka matlab pata tha…na matlab ki dosti thi…. sahi kaha sweety….bahut hi sunder bhaav kavita mein prastut kiye hain👍

  2. बचपन की याद दिलाता हुआ खूबसूरत लेख. इसी तरह आगे भी लिखती रहो..

    1. धन्यवाद आगे भी ऐसे ही पढ़ती रहें ताकि मुझे आप सबसे प्रेरणा मिलती रहे।

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