अतीत का वर्तमान : अमृता प्रीतम
-अजय ‘आवारा’
अमृता प्रीतम जी की लेखनी के बारे में कुछ लिखना, किसी आम कलम के बूते की बात नहीं। अमृता प्रीतम वह लेखिका हैं, जिनकी कलम उन्हें सब से अलग खड़ा करती है। उनकी लेखनी में एक आम आदमी की जुबान बोलती है। उनकी लेखनी में समय के अनुसार परिवर्तन आता रहा है। रूमानियत से शुरू होकर, नारी का दर्द, बंटवारे का दर्द, एवं सामाजिक कुरीतियों पर उनकी कलम खूब चली है।अमृता प्रीतम सिर्फ हिन्दी की ही नहीं, बल्कि उन्होंने पंजाबी में भी प्रमुखता से लिखा है।वे भारत और पाकिस्तान दोनों ही देशों में समान रूप से सम्मानित रहीं हैं। अमृता प्रीतम जी मात्र एक लेखिका तक ही सीमित नहीं थीं। उन्होंने आधारहीन सामाजिक रीति-रिवाजों का जमकर विरोध किया। उन्होंने सामाजिक रीतियों पर सवाल उठाया, उनका प्रयोजन पूछा और जो वैचारिक तौर पर निर्मूल थीं, उनका विरोध किया। उदाहरण के तौर पर हिन्दू पानी-मुसलमान पानी, घर में अलग-अलग जाति के लोगों के लिए अलग बरतन रखे जाने की परंपरा।
अमृता प्रीतम जी जीवन में नए आयाम स्थापित करने के लिए जानी जाती हैं। उनका मानना था कि, जिस रिश्ते का भाव दिल से ना हो, उसका कोई मोल नहीं। उससे अलग हो जाना चाहिए और यही उन्होंने अपने व्यक्तिगत जीवन में करके भी दिखाया। वे जिनसे भी जुडीं, समर्पित रहीं। उन्होंने जीवन के हर मोड़ पर अपने अनुभव से लेखन के लिए प्रेरणा ली। उनके जीवन की कोई घटना मात्र घटना भर नहीं रही। उन्होंने उस घटना से प्रेरित होकर साहित्य लिख डाला। जहां, बात आती है, उनके निजी संबंधों की, तो मेरा मानना है कि किसी भी व्यक्ति, लेखक या साहित्यकार के निजी जीवन पर टिप्पणी करने का अधिकार हमें नहीं है। हर लेखक और साहित्यकार का निजी जीवन होता है, अपनी मुश्किलें, अपनी परेशानियां होती हैं और हर व्यक्ति अपनी परेशानियों, अपनी मुश्किलों से अपनी तरह से निबट पाता है। इसलिए उनके निजी जीवन को, उनके निजी विचारों तक की सीमा में ही छोड़ देना चाहिए। हमें कोई अधिकार नहीं बनता कि उन पर कोई टीका टिप्पणी करें। हां, यह जरूर सीखने की बात है कि उन्होंने अपने जीवन में जो मानदंड स्थापित किए, वह आज के युग में भी सटीक बैठते हैं। उन्होंने अपने साहित्य में भविष्य को देखा है। उनके लेखन में भविष्य का समाज दिखता है। जो मानदंड उन्होंने आज से 70 साल पहले स्थापित किए थे, वही आज के समय में बड़े सटीक प्रतीत होते हैं। 31 अगस्त को उनके जन्म दिवस पर उनको याद करते हुए हम नमन करते हैं। उनके लेखन के बारे में कुछ कहना, सूर्य को रोशनी दिखाने के बराबर होगा और हमारी इतनी हैसियत नही। बस दो पंक्तियां देना चाहूंगा।
“तूने तो हकीकत को जिया है,
एक नई रीत को जन्म दिया है।
लोग पीटते रहे लकीर पुरानी,
तूने एक रवायत को जन्म दिया है।”