Blog

विजयादशमी का हमारे जीवन में व्यवहारिक महत्व

विजयादशमी के पावन पर्व पर आप सभी को अनंत मंगलकामनाएं।
इन पर्व-उत्सवों की जो उमंग पहले हुआ करती थी, वह अब उतनी नहीं रही।इन त्योहारों का स्वरूप लोकोन्मुखी नही रह गया है।आज जीवन में राम को लाने की आवश्यकता है तभी इन पर्वों को सही मायने में प्रासंगिक बनाया जा सकता है।

हम सब जानते हैं कि नवरात्रि, दशहरा और दीपावली, इन सभी पर्वों का संबंध श्री राम से ही है।प्रभु श्री राम ने स्वयं को मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में हमारे समक्ष प्रस्तुत किया और वे परब्रह्म राम न होकर मानव राम हैं, जो निरंतर संघर्षों से लड़ते रहते हैं।उनके जीवन में भी हम सबकी तरह सुख-दुख, घात-प्रतिघात और आशा-निराशा आते रहते हैं और परिस्थितियों की विषमता उन्हें भी विचलित करती है, परंतु वे कर्तव्य-बुद्धि द्वारा संयत रहकर आत्म-विश्वास को पुनः जागृत करते हैं और अंत में समस्त रावण रूपी बाधाओं पर विजय प्राप्त करते हैं।

आज इन उत्सवों के मूल उद्देश्य को हम भूलते ही जा रहे हैं।श्री राम का चरित्र जिस रूप में भी हमारे सामने आता है, उसमें ऐसा लगता है कि प्रभु राम के माध्यम से जैसे हम अपने ही जीवन-परिवेश को चित्रित कर रहे हैं और यही बात किसी भी चरित्र की महानता का सबसे बड़ा प्रमाण होती है कि वह चरित्र आम से खास बन जाए या ईश्वर का स्वरूप ही बन जाए।
राम के चरित्र से हमें यह संदेश मिलता है कि हम आसुरी प्रवृत्तियों का नाश करें न कि दशमुख वाले रावण को जलता देखकर अपने को धन्य समझें, यह तो प्रतीक मात्र है।वास्तव में हमें अपने भीतर के रावण को जलाना है, जो हम कर नहीं पाते और हर दशहरा को एक या कई रावण जलाकर सोचते हैं कि प्रभु को प्राप्त कर लेंगे, परंतु स्वयं सोचकर देखिये कि ऐसा कैसे होगा ? हम पूरा जीवन बिता देते हैं, व्रत-उपवास और ईश्वर का पूजन करने में, परंतु प्रभु राम ने माता सीता को प्राप्त करने के लिए कैसे देवी की आराधना की और अपने भाव-सुमन अर्पित करके कैसे शक्ति को प्रसन्न किया, यह जानने समझने की भी चेष्टा करनी चाहिए।

इस पावन पर्व से जुड़ी बहुत सी बातों को जानने के लिए और इसके सैद्धांतिक महत्व को समझने के लिए आज के दिन हमने “चुभन पॉडकास्ट'” पर एक बहुत ही ख़ास शख्सियत डॉ. आदित्य शुक्ल जी को आमंत्रित किया है।

आदित्य जी बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न व्यक्तित्व हैं, वे एक प्रतिष्ठित वैज्ञानिक, प्रभावी वक्ता, लोकप्रिय कवि, सुमधुर गीतकार, प्रगतिशील चिंतक तथा श्रीरामचरितमानस के प्रवक्ता भी हैं।

रसायन शास्त्र में पीएच. डी. ऑपरेशन मैनेजमेंट में एम. बी.ए. तथा हिंदी साहित्य में एम. ए. की शिक्षा प्राप्त आदित्य जी एक प्रतिष्ठित कंपनी में वरिष्ठ वैज्ञानिक के पद पर कार्यरत हैं। आदित्य जी एक ऐसे विशिष्ट व्यक्ति हैं जिनके व्यक्तित्व में साहित्य, शास्त्र एवं विज्ञान का त्रिवेणी संगम है।

पारिवारिक, सामाजिक एवं शास्त्रीय मान्यताओं एवं प्रसंगों का वर्तमान संदर्भ में वैज्ञानिक विश्लेषण करने की आपकी अदभुत क्षमता है। वे मानवीय सबंधों के मनोविज्ञान को समझने एवं उसे अपने गीत, कविता तथा व्याख्यान के रुप में सटीक प्रस्तुत करने की विशेष योग्यता रखते हैं।

वे बच्चों के लिये संस्कार शाला, युवाओं के लिये व्यक्तित्व निर्माण एवं विकास, दम्पतियों के लिये पारिवारिक समरसता एवं समाज के लिये श्रीराम एवं हनुमानजी जैसे पौराणिक पात्रों की महत्ता जैसे विषयों पर कार्यशाला आयोजित करने में दक्ष एवं अनुभवी हैं।

आदित्य जी अपनी साहित्यिक एवं वैज्ञानिक सेवाओं के लिए पूरे देश के साथ-साथ अमेरिका, जर्मनी, जापान, फ्रांस, साउथ कोरिया, सिंगापुर, थाईलैंड, मलेशिया एवं नेपाल जैसे देशों की यात्रा कर चुके हैं। उन्हें देश-विदेश से अनेक प्रशस्ति एवं सम्मान प्राप्त हुए हैं।

आप उन विरले चिंतक एवं साहित्यकारों में से एक हैं, जो अपने द्वारा कही गई बातों एवं विचारों का स्वयं अनुकरण करते हैं तथा अपने आचरण व जीवनशैली से समाज में प्रदर्शित करते हैं।

One thought on “विजयादशमी का हमारे जीवन में व्यवहारिक महत्व

  1. आदित्य शुक्ला जी और भावना जी को विजयदशमी की हार्दिक शुभकामनाएं……🙏🙏
    विजयदशमी से हमको यही शिक्षा मिलती है ,असत्य और पाप चाहे कितने भी बड़े हों, लेकिन अंत में जीत हमेशा सत्य की ही होती है। इस संसार में कहीं भी असत्य और पाप का साम्राज्य ज्यादा नही टिकता।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back To Top